शकरकंद की खेती कैसे करें? Shakarkand Ki Kheti Kaise Karen

Shakarkand Ki Kheti Kaise Karen: शकरकंद का वानस्पतिक नाम Ipomoea wattatus है। शकरकंद एक ऐसा फल है जिसे कच्चा और पकाकर खाया जाता है। उबला हुआ खाना भी अच्छा होता है।

यदि आप ज़्यादा profits की खेती करना चाहते हैं, तो शकरकंद की खेती (sweet potato cultivation)आपके लिए बेहतर विकल्प है।

शकरकंद की खेती  कैसे करें? – Shakarkand Ki Kheti Kaise Karen

शकरकंद सब्जी की फसल है जिसकी खेती आलू की फसल की तरह ही की जाती है। इसके पौधे जमीन के अंदर और बाहर उगते हैं। इसके पौधे लताओं के रूप में जमीन में फैल जाते हैं। चीन दुनिया में शकरकंद का सबसे बड़ा उत्पादक है, जिसमें भारत छठा सबसे बड़ा उत्पादक है। इसके अलावा यह कई बीमारियों में फायदेमंद होता है। सामान्य तौर पर, शकरकंद पूरे भारत में उगाया जा सकता है, लेकिन Madhya Pradesh, Uttar Pradesh, Odisha, West Bengal, Bihar और Maharashtra कुछ ऐसे राज्य हैं जहां शकरकंद का सबसे अधिक उत्पादन होता है।

भूमि  कैसी होनी चाहिए?

शकरकंद की खेती के लिए उच्च व्यावसायिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए sandy loam मिट्टी की आवश्यकता होती है। खेती की भूमि को ठीक से सूखा जाना चाहिए। कठोर, पथरीली और जलभराव वाली भूमि में खेती न करें क्योंकि ऐसी जगहों पर इसके कंद ठीक से नहीं उगेंगे और उपज प्रभावित होगी। इसकी खेती में भूमि का ph मान 5.8 से 6.8 के बीच होना चाहिए।

सिंचाई कैसे करें ?

शकरकंद के पौधों में पानी रोपाई के आधार पर किया जाता है। यदि इसके पौधे गर्मियों में लगाए जाते हैं, तो रोपण के तुरंत बाद रोपे को पानी देना चाहिए। इसके पौधों में यह पानी सप्ताह में एक बार किया जाता है। इससे खेत में पर्याप्त नमी रहती है और कंदों की वृद्धि अच्छी होती है। यदि पौधों की रोपाई बारिश के मौसम में की गई है, तो उन्हें अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है | इसके अलावा यदि वर्षा समय पर नहीं होती है, तो उन्हें जरूरत के हिसाब से पानी देना होता है |

जलवायु और तापमान कितना होना चाहिए ?

शकरकंद की जलवायु tropical होती है और इसे भारत में तीनों मौसमों में उगाया जा सकता है। यदि आप शकरकंद को व्यावसायिक रूप से उगाना चाहते हैं, तो आपको इसे गर्मियों में उगाना होगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि इसके पौधे गर्मी और बरसात के मौसम में अच्छी तरह विकसित होते हैं। सर्दियों को इसके पौधों की वृद्धि के लिए अच्छा नहीं माना जाता है। इसकी खेती के लिए 80 से 100 सेमी वर्षा की आवश्यकता होती है।

उन्नत किस्में

भू सोना (ground gold)

इस प्रकार के कंद की त्वचा और गुदा दोनों पीले होते हैं। यह किस्म भारत के दक्षिणी राज्यों में व्यापक रूप से उगाई जाती है और इसके पौधों में 14% beta carotene होता है। इस प्रकार के आलू से 20 टन प्रति हेक्टेयर उत्पादन होता है।

लाल प्रजाति की शकरकंद (red sweet potato)

इस प्रजाति के शकरकंद आमतौर पर सख्त होते हैं। इस कारण इस प्रजाति का कंद बहुत ही सहनशील और शक्तिशाली माना जाता है।

भू कृष्णा (Bhu Krishna)

इस किस्म के कंद का बाहरी रंग पीला मैट होता है। लेकिन इससे निकलने वाली गुदा का रंग लाल होता है। इस किस्म की खेती दक्षिण भारत में व्यापक रूप से की जाती है। इस किस्म को केंद्रीय कंद फसल अनुसंधान संस्थान, त्रिवेंद्रम द्वारा विकसित किया गया था। इसका कुल उत्पादन 18 टन प्रति हेक्टेयर है।

सफ़ेद प्रजाति की शकरकंद (white sweet potato)

इस प्रजाति के शकरकंद में पानी की मात्रा अधिक होती है। सफेद कंद व्यापक रूप से तलने और खाने के लिए उपयोग किए जाते हैं।

पंजाब मीठा आलू 21 (Punjab Sweet Potato 21)

यह किस्म पंजाब में व्यापक रूप से उगाई जाती है। इसके पौधे तैयार होने में 140 से 145 दिन लगते हैं और इसके कंदों पर सफेद गुदा पाया जा सकता है। इस प्रकार के पौधे से प्रति हेक्टेयर 22 टन उत्पादन होता है।

उर्वरक की मात्रा कितनी होनी चाहिए?

आलू की खेती में पर्याप्त Organic manure डाली जानी चाहिए ताकि मिट्टी की उत्पादकता सही और स्थिर रहे। केंद्रीय कंद अनुसंधान संस्थान द्वारा सुझाई गई एक रिपोर्ट के अनुसार पहले खेत की जुताई करते समय 5 से 8 टन गोबर खाद मिट्टी में मिला देना चाहिए।

रासायनिक उर्वरकों में 50 kg nitrogen ,25 kg phosphorus एवं 50 kg potash प्रति हेक्टेयर प्रयोग करना चाहिए। बेल लगाते समय शुरुआत में जड़ों को आधी nitrogen, phosphorus और potash की पूरी मात्रा देनी चाहिए। बची हुई nitrogen को दो भागों में बाँट लें और एक भाग को उर्वरक के रूप में 15 दिन और दूसरे भाग को 45 दिनों से अधिक समय तक डालें।

अधिक अम्लीय भूमि में 500 kg प्रति हैक्टर की दूर से चूने का प्रयोग कंद विकास के लिए अच्छा रहता हैं| इनके अलावा Magnesium Sulphate, Zincsulfate और Boron 25:15:10 kg प्रति हेक्टर की दर से प्रयोग करने पर कन्द फटने की समस्या नहीं आती हैं व एक समान व आकार के कन्द लगते हैं|

खरपतवार नियंत्रण कैसे करें?

शकरकंद की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए प्राकृतिक एवं रासायनिक विधियों का प्रयोग किया जाता है। रासायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण के लिए कंद के अंकुरण से पहले पर्याप्त मात्रा में matribucine और barracks का छिड़काव खेत में करना चाहिए।

इसके अलावा यदि प्राकृतिक रूप से खरपतवारों को हटाना है तो इसके लिए पौधों में निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। इसके पौधों की पहली निराई अंकुरण के 20 दिन बाद की जाती है जब इसके पौधे अंकुरित होने लगते हैं। पौधों की दूसरी और तीसरी मल्चिंग 25 दिन के अंतराल पर की जाती है।

रोग एवं कीट प्रबंधन (diseases and pests)

शकरकंद का घुन (sweet potato mite)

इस प्रकार का रोग पौधों की पत्तियों को प्रभावित करता है। रोग एक कीट के कारण होता है जो पौधे की पत्तियों और लताओं को खाता है और उन्हें नष्ट कर देता है, जिससे पौधे का विकास पूरी तरह से रुक जाता है। शकरकंद के पौधों को इस रोग से बचाने के लिए रोजर की उचित मात्रा का छिड़काव किया जाता है।

फल बेधक रोग (fruit borer disease)

इस प्रकार की बीमारी कभी भी कंदों पर हमला कर सकती है। फल छेदक सुंडी कंदों में प्रवेश कर उन्हें पूरी तरह नष्ट कर देती है। कुछ समय बाद फल सड़ कर नष्ट हो जाएगा। इस रोग से बचाव के लिए पौधे रोपने से पहले मिट्टी को carburetor की सही मात्रा से उपचारित किया जाता है। इसके अलावा यदि रोग प्रभावित फसलों में पाया जाता है तो पौधों पर carbaryl की उचित मात्रा का छिड़काव करें।

माहू (mahu)

महू रोग शकरकंद के पौधों पर कीटों के रूप में हमला करता है। इस रोग के कीट आकार में छोटे तथा लाल, हरे, काले और पीले रंग के होते हैं। यह रोग पौधों और पत्तियों के नाजुक भागों पर हमला करता है।

कुछ समय बाद, पौधे का बढ़ना बंद हो जाता है, और प्रभाव को अधिकतम करने के लिए, पूरा पौधा सूख जाता है और मर जाता है। रोग की रोकथाम के लिए शकरकंद के पौधों पर Imidacloprid की उचित मात्रा का छिड़काव किया जाता है।

पैदावार और लाभ( yield and profit)

उपज लगभग 25 टन प्रति हेक्टेयर है। शकरकंद का बाजार भाव करीब 10 रुपये प्रति किलो है, जिससे किसान एक बार इसकी खेती कर आसानी से Rs 1.25 lakh से अधिक कमा सकते हैं।

निष्कर्ष

शकरकंद का वानस्पतिक नाम Ipomoea wattatus है। इसके पौधे जमीन के अंदर और बाहर उगते हैं। इसके पौधे लताओं के रूप में जमीन में फैल जाते हैं। चीन दुनिया में शकरकंद का सबसे बड़ा उत्पादक है, जिसमें भारत छठा सबसे बड़ा उत्पादक है। इसके अलावा यह कई बीमारियों में फायदेमंद होता है। शकरकंद की खेती के लिए उच्च व्यावसायिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए sandy loam मिट्टी की आवश्यकता होती है।

शकरकंद की जलवायु tropical होती है और इसे भारत में तीनों मौसमों में उगाया जा सकता है। यदि आप शकरकंद को व्यावसायिक रूप से उगाना चाहते हैं, तो आपको इसे गर्मियों में उगाना होगा। आलू की खेती में पर्याप्त जैविक खाद डाली जानी चाहिए ताकि मिट्टी की productivity सही और स्थिर रहे।

शकरकंद की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए प्राकृतिक एवं रासायनिक विधियों का प्रयोग किया जाता है। उपज लगभग 25 टन प्रति हेक्टेयर है। शकरकंद का बाजार भाव करीब 10 रुपये प्रति kg है, जिससे किसान एक बार इसकी खेती कर आसानी से Rs 1.25 lakh से अधिक कमा सकते हैं।

तो दोस्तों हमने शकरकंद की खेती कैसे करें (How to Cultivate sweet potato  ) की सम्पूर्ण जानकारी आपको इस लेख से देने की कोशिश की है उम्मीद है आपको यह लेख पसंद आया होगा अगर आपको हमारी पोस्ट अच्छी लगी हो तो प्लीज कमेंट सेक्शन में हमें बताएँ और अपने दोस्तों के साथ शेयर भी करें। Thanks for reading

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