चुम्बकीय क्षेत्र में आवेश की गति :
जब कोई गतिशील आवेश q किसी चुम्बकीय क्षेत्र B तथा विद्युत क्षेत्र E में v वेग से प्रवेश या गति करता है तो आवेश q पर दो प्रकार के बल कार्य करते है।
1. चुम्बकीय बल = qvB
2. विद्युत बल = qE
अतः आवेश q पर कुल बल का मान दोनों बलों के योग के बराबर होता है।
अतः कुल बल (F) = चुम्बकीय बल + विद्युत बल
F = qvB + qE
इस बल के बारे में सबसे पहले एच.ए.लोरेन्ज (H. A. Lorentz) ने बताया था इसलिए इसे लॉरेंज बल भी कहते है।
चूंकि हम यहाँ केवल चुम्बकीय बल का अध्ययन कर रहे है अतः आवेश पर लगने वाले चुंबकीय बल के बारे में विशेष अध्ययन करेंगे।
यदि v तथा B के मध्य θ कोण है तो आवेश पर लगने वाला लॉरेंज बल
F = qvB sinθ यदि हमें चुंबकीय क्षेत्र की दिशा ज्ञात करनी है तो उसके लिए हम पहले कई नियम पढ़ चुके है जैसे दक्षिण हस्त पेच का नियम इत्यादि। यदि आवेश विराम अवस्था में अर्थात v = 0 होने से बल F = 0 अतः कह सकते है की केवल गतिशील आवेश ही चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है।
अधिक विस्तार से पढ़ने के लिए हम कुछ विशेष स्थितियों का अध्ययन करते है
1. जब आवेशित कण चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा में प्रवेश करता है
हम ऊपर पढ़ चुके है की किसी आवेशित कण पर लगने वाला बल
F = qvB sinθ
यदि आवेशित कण की गति चुंबकीय क्षेत्र की दिशा में हो रही है तो V तथा B के मध्य कोण शून्य होगा
अर्थात θ = 0
अतः
sin0 = 0
अतः आवेशित कण पर लगने वाला चुंबकीय बल का मान शून्य होगा। इस स्थिति में आवेशित कण सरल रेखीय पथ पर गति करता है।
2. जब आवेशित कण चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा के लम्बवत प्रवेश करता है:
इस स्थिति में आवेशित कण चुंबकीय क्षेत्र के लंबवत प्रवेश करता है अर्थात इस स्थिति में V तथा B के मध्य 90 डिग्री का कोण बनता है।
अर्थात
θ = 90
अतः
sin90 = 1
F = qvB sinθ
अतः इस स्थिति में sinθ = 1
अतः F = qvB
चूँकि यह बल आवेशित कण के वेग की दिशा के लम्बवत कार्य करता है अतः इस स्थिति में कण इस बल के कारण वृत्ताकार गति करता है , वृत्ताकार गति के लिए इस कण पर एक अभिकेंद्रीय बल भी कार्य करता है।
वृताकार मार्ग में गति करवाने के लिए यह आवश्यक है की कण पर अभिकेंद्रिय बल तथा चुम्बकीय बल (लॉरेन्ज बल ) का मान समान होना चाहिए।
चूँकि इस स्थिति में आवेशित कण वृत्ताकार गति कर रहा है अतः यहाँ
अभिकेंद्रिय बल = चुम्बकीय बल (लॉरेन्ज बल )
अभिकेंद्रिय बल = mv2/r
चुम्बकीय बल (लॉरेन्ज बल ) = qvB
अतः
mv2/r = qvB
![](https://1.bp.blogspot.com/-jQ3mIWo7520/Wn7meqNdGbI/AAAAAAAAB8c/FQooHi1lTVc2fKZjbVy9q87TDlZdby4sgCLcBGAs/s1600/58.png)
यहाँ r वृत्तीय पथ की त्रिज्या है
चूँकि यहाँ आवेशित कण वृतीय गति कर रहा है अतः कण की कोणीय आवृति (w) को निम्न प्रकार दर्शाया जाता है
चूँकि v = wr
तथा कोणीय आवृति (w) = 2πv
अतः
![](https://3.bp.blogspot.com/-0wR-XzhSjH4/Wn7n_3dQt8I/AAAAAAAAB8o/utSYauiGg_0uPMdKAcHg86Yw1OhmRCV_wCLcBGAs/s1600/710.png)
आवेशित कण को वृत्तीय पथ का एक चक्कर पूरा करने में लगा समय
![](https://2.bp.blogspot.com/-SZj3xTUQWX8/Wn7oXZoZG5I/AAAAAAAAB8s/OwJ2pWUfy8YTSD1LpTrNKs8bu34ZvUH_QCLcBGAs/s1600/88.png)
नोट : अधिक वेग से गति करने वाले आवेशित कण बड़ी त्रिज्या के वृत्तीय पथ का अनुसरण करते है जबकि कम वेग से गति करने वाले आवेशित कण छोटी त्रिज्या के वृत्तीय पथ का अनुसरण करते है।
3. जब आवेशित कण चुम्बकीय क्षेत्र से किसी कोण पर गति करता है:
यहाँ किसी कोण पर गति करने का तात्पर्य है की आवेशित कण चुंबकीय क्षेत्र से 0 , 90 या 180 डिग्री के अतिरिक्त अन्य किसी θ कोण पर गति करता है।
इस स्थिति में आवेशित कण कुण्डलिनी मार्ग में गति करता है।
इस स्थिति में कुण्डलिनी मार्ग में गति कर रहे कुण्डलिनी की त्रिज्या
![](https://1.bp.blogspot.com/-E2gVc4PY6lI/Wn79o3ZzqlI/AAAAAAAAB9w/pzJUwIG9lWcTtUOAVgfazT4-hUAwqb4bQCLcBGAs/s1600/58.png)
कुण्डलिनी पथ का आवर्तकाल
![](https://1.bp.blogspot.com/-_Hl_2ucloas/Wn7-JTxDVaI/AAAAAAAAB94/DvEYrTK1kiUB58OJzY7JP_LUhIIIclC_gCLcBGAs/s1600/88.png)
Remark:
दोस्तों अगर आपको इस Topic के समझने में कही भी कोई परेशांनी हो रही हो तो आप Comment करके हमे बता सकते है | इस टॉपिक के expert हमारे टीम मेंबर आपको जरूर solution प्रदान करेंगे|