वस्तु का आवेशन :
जब किसी वस्तु के परमाणुओं में इलेक्ट्रोनों की संख्या प्रोटोनों की संख्या से भिन्न हो जाती है तो वह आवेशित हो जाती है। इलेक्ट्रॉनो की कमी हो जाने पर वस्तु धनावेशित और इलेक्ट्रॉनो की अधिकता होने पर वस्तु ऋण आवेशित हो जाती है।
इलेक्ट्रॉन के आवेश के परिमाण को मूल आवेश कहते है।
मूल आवेश e = 1.6 x 10-19 कुलाम
आवेशन की विधियाँ (methods of charging in hindi) :
किसी वस्तु को आवेशित करने की निम्न विधियाँ है –
एक वस्तु को घर्षण , चालन , प्रेरण , ऊष्मीय उत्सर्जन , प्रकाश वैद्युत प्रभाव और क्षेत्र उत्सर्जन आदि विधियों द्वारा आवेशित किया जा सकता है।
1. घर्षण द्वारा आवेशन : दो वस्तुओ को परस्पर रगड़ने पर इलेक्ट्रॉन एक वस्तु से दूसरी वस्तु पर स्थानान्तरित हो जाते है जिससे एक वस्तु धनावेशित व दूसरी वस्तु ऋणावेशित हो जाती है। उदाहरण के लिए काँच की छड़ को रेशम से रगड़ने पर छड धनावेशित व रेशम ऋण आवेशित हो जाता है। बादल भी घर्षण के कारण आवेशित हो जाते है। घर्षण द्वारा आवेशन में आवेश संरक्षण नियम का पालन होता है। एक वस्तु से दूसरी वस्तु पर इलेक्ट्रॉनों के स्थानान्तरण के कारण समान मात्रा में धनावेश तथा ऋणावेश उत्पन्न होते है।
2. चालन या चालकीय विद्युतीकरण अथवा भौतिक स्पर्श द्वारा आवेशन : यदि किसी अनावेशित चालक को आवेशित चालक से स्पर्श कराया जाता है तो अनावेशित चालक पर आवेशित चालक के बराबर आवेश प्राप्त किया जा सकता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि स्पर्श बिंदु पर कुछ इलेक्ट्रॉन स्थानांतरित हो जाते है। उदाहरण के लिए यदि किसी अनावेशित इलेक्ट्रोस्कोप की चकती को ऋणात्मक आवेशित छड से स्पर्श कराया जाता है तो इलेक्ट्रोस्कोप की पत्तियां भी ऋणात्मक आवेश ग्रहण कर लेती है। इस तरह आवेश विभाजित हो जाता है और वह अपरिवर्तित रहता है।
अर्थात कोई आवेशित पिण्ड या वस्तु जब किसी आवेशित चालक के सम्पर्क में आती है तो वह आवेश का कुछ बंटवारा कर सकती है।
ध्यान दे कि जब किसी चालक को धनावेशित किया जाता है तो उसका द्रव्यमान घट जाता है क्योंकि उस चालक से इलेक्ट्रोनों को त्यागा जाता है।
जब किसी चालक को ऋण आवेशित किया जाता है तो उसका द्रव्यमान बढ़ जाता है क्योंकि वह चालक इलेक्ट्रोनो को ग्रहण कर रहा है।
समान प्रकार के आवेश एक दुसरे को प्रतिकर्षित करते है जबकि विपरीत आवेश एक दुसरे को आकर्षित करते है , इस नियम को कैवेन्डिश का स्थिर विद्युत आकर्षण और प्रतिकर्षण का नियम कहते है।
3. प्रेरण द्वारा आवेशन : यदि किसी उदासीन वस्तु के पास कोई आवेशित वस्तु लायी जाती है तो आवेशित वस्तु उदासीन वस्तु में स्थित विपरीत प्रकृति के आवेशो को समीप खींचती है और समान प्रकृति के आवेशो को प्रतिकर्षित करती है इसके कारण उदासीन वस्तु का एक किनारा धनावेशित तथा दूसरा किनारा ऋणावेशित हो जाता है।
याद रखे कि प्रेरण उत्पन्न करने वाली वस्तु न तो आवेश प्राप्त करती है और न ही आवेश खोती है।
प्रेरित आवेश सदैव प्रेरण करने वाले आवेश से विपरीत प्रकृति का होता है।
प्रेरित आवेश , प्रेरण उत्पन्न करने वाले आवेश से हमेशा कम या बराबर होता है लेकिन कभी भी अधिक नहीं हो सकता व इसका अधिकतम मान q’ = -q [1 – 1/K] होता है। यहाँ q = प्रेरण उत्पन्न करने वाला आवेश और K उदासीन वस्तु के पदार्थ का पराविद्युतांक है।
धातुएँ के लिए K का मान अनंत होता है अत: q’ = -q अर्थात धातुओं में प्रेरित आवेश , प्रेरण उत्पन्न करने वाले आवेश के बराबर और विपरीत होता है।
प्रेरण केवल वस्तुओ में अर्थात चालक और अचालक दोनों वस्तुओं में होता है , कणों में नहीं होता है।
4. उष्मीय उत्सर्जन द्वारा आवेशन : जब धातु को उच्च ताप तक गर्म किया जाता है तो धातु के कुछ इलेक्ट्रॉन धातु के बाहर चले जाते है। जिससे धातु धन आवेशित हो जाती है।
5. प्रकाश वैद्युत प्रभाव द्वारा आवेशन : जब उपयुक्त आवृति की विद्युत चुम्बकीय किरणों को किसी धातु पृष्ठ पर गिराया जाता है तो कुछ इलेक्ट्रॉन बाहर निकल आते है जिससे धातु धनावेशित हो जाती है।
6. क्षेत्र उत्सर्जन द्वारा आवेशन : जब उच्च परिमाण का विद्युत क्षेत्र धातु पृष्ठ के निकट आरोपित किया जाता है तो धातु पृष्ठ से कुछ इलेक्ट्रोन बाहर निकल आते है तथा इस तरह धातु धन आवेशित हो जाती है।
प्रेरण द्वारा आवेशन और चालन द्वारा आवेशन में क्या अंतर है ?
दोनों विधियों में मुख्य अंतर निम्नलिखित है –
1. प्रेरण में , प्रेरित आवेश सदैव स्रोत आवेश के विपरीत प्रकृति का होता है जबकि चालन विधि में दोनों वस्तुओं पर आवेश की प्रकृति समान होती है।
2. प्रेरण में , वस्तु का कुल आवेश अपरिवर्तित होता है जबकि चालन में यह बदल जाता है।
3. प्रेरण में दो वस्तुएँ बिना सम्पर्क के एक दुसरे के पास होती है जबकि चालन विधि में उनका सम्पर्क होता है।