LC ( एल सी ) दोलन क्या है ?

LC दोलन क्या है (LC oscillation in Hindi):

  1. संधारित्र C तथा एक प्रेरकत्व L को श्रेणी क्रम में जोड़ दिया जाता है तथा संधारित्र पूर्ण आवेशित हो जाता है अत: संधारित्र की विद्युत ऊर्जा qm2/2Cहोगी।
  2. इस संधारित्र से प्रेरकत्व L में धारा प्रवाहित की जाती है अत: संधारित्र पर आवेश घटता है , इस कारण संधारित्र की विद्युत ऊर्जा भी घटती है लेकिन प्रेरकत्व की चुम्बकीय ऊर्जा बढती है।
  3. जब संधारित्र पूर्णत: निरावेशित हो जाता है तब प्रेरकत्व में धारा का मान अधिकतम हो जाता है एवं संधारित्र की विद्युत ऊर्जा प्रेरकत्व में चुम्बकीय ऊर्जा LI2/2 के रूप में परिवर्तित हो जाती है।
  4. प्रेरकत्व में धारा प्रवाहित करने पर प्रेरकत्व से गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन के कारण एक प्रेरित धारा उत्पन्न हो जाती है , इस प्रेरित धारा के कारण संधारित्र विपरीत दिशा में आवेशित होता है अत: प्रेरकत्व की चुम्बकीय ऊर्जा घटती है। जबकि संधारित्र की विद्युत ऊर्जा बढती है।
  5. अंत में संधारित्र पूर्णतया आवेशित हो जाता है परन्तु इस बार आवेशन की दिशा पहले के विपरीत होती है अत: प्रेरकत्व की चुम्बकीय ऊर्जा शून्य हो जाती है एवं संधारित्र की विद्युत ऊर्जा अधिकतम हो जाती है , यही क्रम चलता रहता है।

ऐसा अनन्तकाल तक होता रहना चाहिए परन्तु व्यवहार में ऐसा नहीं होता , इसका कारण यह है कि प्रेरकत्व का कुछ न कुछ प्रतिरोध होता है। इस प्रतिरोध के कारण विद्युत ऊर्जा का कुछ भाग ऊर्जा में परिवर्तित हो जाता है अत: विद्युत ऊर्जा की हानि होती है अत: कुछ समय बाद दोलन समाप्त हो जाते है।

अनुनादी आवृत्ति (w0:

अनुनाद की स्थिति में XL = Xc

W0L = 1/W0C

W02 = 1/LC

W0 = 1/√LC

आवृत्ति परिवर्तन का विद्युत धारा पर प्रभाव :

  1. यदि परिपथ की आवृति w अनुनादी आवृति w0के बराबर हो अर्थात w = w0तो XL  = Xc होगा अत: Z = R होगा एवं धारा का मान अधिकतम होगा।
  2. यदि परिपथ की आवृति w अनुनादी , आवृति w0से अधिक हो अर्थात w > w0तो X> Xc होगा अत: परिपथ की प्रतिबाधा Z = √[R2 + (XL – Xc)2] अत: I का मान कम होगा।
  3. यदि परिपथ की आवृत्ति w अनुनादी आवृति w0से कम हो अर्थात w < w0तो X< Xc होगा अत: परिपथ की प्रतिबाधा Z = √[R2 + (XC – XL)2] अत: I का मान कम होगा।

अत: स्पष्ट है कि केवल अनुनादी आवृति w0 पर ही धारा का मान अधिकतम होता है अन्य आवृतियो पर धारा का मान कम होता है।

अनुनादी परिपथ के उपयोग :

हमारे रेडियो या टेलीवीजन सेट तक एक समय में काफी स्टेशनों के संकेत प्राप्त होते है जबकि एक समय में एक ही स्टेशन के संकेतो को चुनना पड़ता है इसे वर्णकारी या ट्यूनिंग कहते है। इसके लिए टीवी में ट्यूनर लगा होता है।

अत: जब C के मान को परिवर्तित करते है तो टीवी या रेडियो सेट की आवृति परिवर्तित हो जाती है तथा किसी समय पर आने वाले संकेतो की आवृति सेट की आवृति के बराबर हो जाता है तो इन संकेतों में अनुनाद हो जाता है और इन संकेतो के लिए धारा का मान अधिकतम होता है जबकि अन्य संकेतो के लिए धारा का मान न्यूनतम हो जाता है अत: एक समय पर एक ही संकेत प्राप्त होते है।

अर्द्धशक्ति बिंदु आवृतियां (W1 व W2) :

अनुनादी आवर्ती w0 पर धारा का मान अधिकतम होता है जबकि अन्य आवृतियों पर धारा का मान कम हो जाता है।

आवृतियों के वे मान W1 व W2 जिन पर धारा का मान अधिकतम धारा का 1/√2 गुना रह जाता है। अर्द्धशक्ति बिंदु आवृति कहलाता है।

W1 अनुनादी आवृति w0 से यदि Δw अधिक हो तो W2 अनुनादी आवृति w0 से Δw कम होगा।

अत: W1 = W0 + ΔW

W2 = W0 – ΔW

बैण्ड विस्तार : अर्द्ध शक्ति बिंदु आवृतियों के अंतर को बैंड विस्तार कहते है।

बैंड विस्तार = W1 – W2

बैंड विस्तार = [W0 + ΔW] – [W0 – ΔW]

बैंड विस्तार = 2ΔW

अनुनादी की तीक्ष्णता या गुणवत्ता गुणांक (Q) : अनुनादी आवर्ती w0 तथा बैण्ड विस्तार ΔW के अनुपात को अनुनाद की तीक्षता कहते है।

Q = W0/2ΔW

एक पूर्ण चक्र में औसत शक्ति :

तात्क्षणिक शक्ति का प्रथम भाग = (VmImcosΘ)/2

समय t पर निर्भर नहीं करता है।

अत: यह भाग अपरिवर्तित रहता है।

जबकि दूसरा भाग = [- VmImcos(2wt + Θ)]/2

समय t के साथ आवर्त रूप से बदलता है।

अत: एक पूर्ण चक्र में दूसरे भाग का भाग औसत शून्य होगा।

औसत शक्ति P =  (VmImcosΘ)/2

P = (Vm/√2)(Im/√2)cosΘ

P = Vrms Irms cosΘ

शक्ति गुणांक :

प्रत्यावर्ती धारा परिपथ की औसत शक्ति विभवान्तर और धारा के गुणनफल के अतिरिक्त इनके बीच के कला कोण की कोज्या पर निर्भर करता है।

किसी गुणांक cosΘ को शक्ति गुणांक कहा जाता है।

शक्ति गुणांक cosΘ = R/Z

R परिपथ

Θ = 0

P = Vrms Irms cos0

cos0 = 1

P = Vrms Irms 

L या C परिपथ

Θ = ±π/2

P = Vrms Irms cos(±π/2)

cos(±π/2) = 0

P = 0

अत: शुद्ध प्रतिरोध के कारण ही शक्ति व्यय होती है जबकि शुद्ध प्रेरकत्व व शुद्ध धारा के कारण कोई शक्ति व्यय नहीं होती।

शुद्ध प्रतिरोध संभव है जबकि शुद्ध प्रेरकत्व एवं शुद्ध धारिता संभव नहीं है क्योंकि कुण्डली (प्रेरकत्व) संधारित्र (धारिता) जिस धातु की बनाई जाएगी उस धातु का प्रतिरोध कुछ न कुछ अवश्य होगा।

अर्थात R को शून्य करना संभव नहीं है अत:L परिपथ वास्तव में RL परिपथ है इसी प्रकार C परिपथ RC परिपथ है।

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