Global Warming Essay in Hindi

Global Warming Essay in Hindi: पर्यावरण में कार्बन डाइऑक्साइड के मात्रा में वृद्धि के कारण पृथ्वी के सतह पर निरंतर तापमान का बढ़ना ग्लोबल वार्मिंग है।

Global Warming Essay in Hindi

ग्लोबल वार्मिंग दुनिया के सभी देशों के लिए एक बड़ी समस्या है, जिसका समाधान सकारात्मक शुरूआत के साथ करना चाहिए।

प्रस्तावना

पृथ्वी का बढ़ता तापमान विभिन्न आशंकाओं (खतरों) को जन्म देता है, साथ ही इस ग्रह पर जीवन के अस्तित्व के लिए संकट पैदा करता है। यह क्रमिक और स्थायी रूप से पृथ्वी के जलवायु में परिवर्तन उतपन्न करता है तथा इससे प्रकृति का संतुलन प्रभावित होता है।

वातावरण पर कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का हानिकारक प्रभाव

पृथ्वी पर CO2 में वृद्धि से, निरंतर ऊष्मा तरंगों का बढ़ना, गर्म लहरें, तेज तुफान की अचानक घटना, अप्रत्याशित और अनचाहें चक्रवात, ओजोन परत को नुकसान पहुंचना, बाढ़, भारी बारिस, सूखा, भोजन की कमी, बीमारी तथा मृत्यु इत्यादि मानव जीवन पर काफी हद तक प्रभाव डाल रहे हैं। जीवाश्म ईंधन के दोहन, उर्वरकों का उपयोग, वनों को कांटना, बिजली की अत्यधिक खपत, फ्रिज में उपयोग होने वाले गैस इत्यादि के कारणवश वातावरण में CO2 का अत्यधिक उत्सर्जन हो रहा है। आकड़ों के अनुसार, यदि निरंतर बढ़ते CO2 के उत्सर्जन पर नियंत्रण नहीं पाया गया तो यह आशंका है की 2020 तक ग्लोबल वार्मिंग में बड़ा उछाल आयेगा जो की पर्यावरण पर बुरा प्रभाव डाल सकता है।

CO2 के स्तर में बढ़ोत्तरी “ग्रीन हाउस गैस प्रभाव” का कारक है, जो सभी ग्रीन हाउस गैस (जलवाष्प, CO2, मीथेन, ओजोन) थर्मल विकरण को अवशोषित करता है, तथा सभी दिशाओं में विकीर्णं होकर और पृथ्वी के सतह पर वापस आ जाते हैं जिससे सतह का तापमान बढ़ कर ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण बनता है।

ग्लोबल वार्मिंग के प्रमुख कारक

ग्रीन हाउस गैस जैसे CO2, मीथेन, पृथ्वी पर बढ़ते ग्लोबल वार्मिंग मुख्य कारक हैं। इसका सीधा प्रभाव समुद्री स्तर का विस्तार, पिघलती बर्फ की चट्टाने, ग्लेशियर, अप्रत्याशित जलवायु परिवर्तन पर होता है, यह जीवन पर बढ़ते मृत्यों के संकट का प्रतिनिधित्व करता है। आकड़ों के अनुसार यह अनुमान लगाया जा रहा है की मानव जीवन के बढ़ते मांग के कारण बीसवीं शताब्दी के मध्य से तापमान में बहुत अधिक बढ़ोत्तरी आयी है जिसके फलस्वरूप वैश्विक स्तर पर वायुमंडलीय ग्रीन हाउस गैस सांद्रता के मात्रा में भी वृद्धि हुई है।

पिछली सदी के 1983, 1987, 1988, 1989, और 1991 सबसे गर्म छ: वर्ष रहे हैं, यह मापा गया है। इसने ग्लोबल वार्मिंग में अत्यधिक वृद्धि किया जिसके फलस्वरूप प्राकृतिक आपदाओं का अनपेक्षित प्रकोप सामने आया जैसे- बाढ़, चक्रवात, सुनामी, सूखा, भूस्खलन, भोजन की कमी, बर्फ पिघलना, महामारी रोग, मृत्यों आदि इस कारणवश प्रकृति के घटना चक्र में असंतुलन उत्पन्न होता है जो इस ग्रह पर जीवन के अस्तित्व के समाप्ति का संकेत है।

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ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि के कारण, पृथ्वी से वायुमंडल में जल-वाष्पीकरण अधिक होता है जिससे बादल में ग्रीन हाउस गैस का निर्माण होता है जो पुनः ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनता है। जीवाश्म ईंधन का जलना, उर्वरक का उपयोग, अन्य गैसों मे वृद्धि जैसे- CFCs, ट्रोपोस्फेरिक ओजोन, और नाइट्रस ऑक्साइड भी ग्योबल वार्मिंग के

कारक हैं। तकनीकी आधुनीकरण, प्रदुषण विस्फोट, औद्योगिक विस्तार के बढ़ते मांग, जंगलों की अन्धाधुन कटाई तथा शहरीकरण ग्लोबल वार्मिंग वृद्धि में प्रमुख रूप से सहायक हैं।

हम जंगल की कटाई तथा आधुनिक तकनीक के उपयोग से प्राकृतिक प्रक्रियाओं को विक्षुब्ध (Disturb) कर रहे हैं। जैसे वैश्विक कार्बन चक्र, ओजोन के परत में छेद्र बनना तथा UV तंरगों का पृथ्वी पर आगमन जिससे ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि हो रही है।

ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव

ग्लोबल वार्मिंग के स्त्रोतों में वृद्धि से साफ तौर पर ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव देखा जा सकता है। US भूगर्भीय सर्वेक्षण (US Geological Survey) के अनुसार मोंटाना ग्लेशियर नेशनल पार्क पर 150 ग्लेशियर मौजुद थे पर ग्लोबल वार्मिंग के वजह से वर्तमान में मात्र 25 ग्लेशियर बचे हैं। अधिक स्तर पर जलवायु में परिवर्तन तथा तापमान से ऊर्जा (वायुमंडल के उपरी सतह पर ठंडा तथा ऊष्णकटिबंधीय महासागर के गर्म होने से) लेकर तूफान अधिक खतरनाक, शक्तिशाली और मजबूत बन जाते हैं। 2012 को 1885 के बाद सबसे गर्म वर्ष दर्ज किया है तथा 2003 को 2013 के साथ सबसे गर्म वर्ष के रूप में देखा गया है।

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ग्लोबल वार्मिंग के फलस्वरूप वातावरण के जलवायु में, बढ़ती गर्मी का मौसम, कम होता ठंड का मौसम, बर्फ के चट्टानों का पिघलना, तापमान का बढ़ना, हवा परिसंचरण पैटर्न में बदलाव, बिन मौसम के वर्षा का होना, ओजोन परत में छेद्र, भारी तूफान की घटना, चक्रवात, सूखा, बाढ़ और इसी तरह के अनेक प्रभाव हैं।

वातावरण का तापमान : पिछले दस सालों में धरती के औसत तापमान में 0.3 से 0.6 डिग्री सेल्शियस की बढ़ोतरी हुई है। आशंका यही जताई जा रही है कि आने वाले समय में ग्लोबल वार्मिंग में और बढ़ोतरी ही होगी।

समुद्र सतह में बढ़ोतरी : ग्लोबल वार्मिंग से धरती का तापमान बढ़ेगा जिससे ग्लैशियरों पर जमा बर्फ पिघलने लगेगी। कई स्थानों पर तो यह प्रक्रिया शुरू भी हो चुकी है। ग्लैशियरों की बर्फ के पिघलने से समुद्रों में पानी की मात्रा बढ़ जाएगी जिससे साल-दर-साल उनकी सतह में भी बढ़ोतरी होती जाएगी। समुद्रों की सतह बढ़ने से प्राकृतिक तटों का कटाव शुरू हो जाएगा जिससे एक बड़ा हिस्सा डूब जाएगा। इस प्रकार तटीय ( कोस्टल) इलाकों में रहने वाले अधिकांश ( बहुत बडा हिस्सा, मोस्ट आफ देम) लोग बेघर हो जाएंगे।

मानव स्वास्थ्य पर असर : जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा असर मनुष्य पर ही पड़ेगा और कई लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पडेग़ा। गर्मी बढ़ने से मलेरिया, डेंगू और यलो फीवर ( एक प्रकार की बीमारी है जिसका नाम ही यलो फीवर है) जैसे संक्रामक रोग ( एक से दूसरे को होने वाला रोग) बढ़ेंगे। वह समय भी जल्दी ही आ सकता है जब हममें से अधिकाशं को पीने के लिए स्वच्छ जल, खाने के लिए ताजा भोजन और श्वास ( नाक से ली जाने वाली सांस की प्रोसेस) लेने के लिए शुध्द हवा भी नसीब नहीं हो।

पशु-पक्षियों व वनस्पतियों पर असर : ग्लोबल वार्मिंग का पशु-पक्षियों और वनस्पतियों पर भी गहरा असर पड़ेगा। माना जा रहा है कि गर्मी बढ़ने के साथ ही पशु-पक्षी और वनस्पतियां धीरे-धीरे उत्तरी और पहाड़ी इलाकों की ओर प्रस्थान ( रवाना होना) करेंगे, लेकिन इस प्रक्रिया में कुछ अपना अस्तित्व ही खो देंगे।

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शहरों पर असर : इसमें कोई शक नहीं है कि गर्मी बढ़ने से ठंड भगाने के लिए इस्तेमाल में लाई जाने वाली ऊर्जा की खपत (कंजम्शन, उपयोग ) में कमी होगी, लेकिन इसकी पूर्ति एयर कंडिशनिंग में हो जाएगी। घरों को ठंडा करने के लिए भारी मात्रा में बिजली का इस्तेमाल करना होगा। बिजली का उपयोग बढ़ेगा तो उससे भी ग्लोबल वार्मिंग में इजाफा ही होगा।

ग्लोबल वार्मिंग का समाधान

सरकारी एजेंसियों, व्यवसाय प्रधान, निजी क्षेत्र, NGOs आदि द्वारा बहुत से कार्यक्रम, ग्लोबल वार्मिंग कम करने के लिए चलाएं तथा क्रियान्वित किए जा रहे हैं। ग्लोबल वर्मिंग के वजह से पहुचने वाले क्षति में कुछ क्षति ऐसे हैं (बर्फ की चट्टानों का पिघलना) जिसे किसी भी समाधान के माध्यम से पुनः प्राप्त नहीं किया जा सकता है। जो भी हो हमें रूकना नहीं चाहिए और सबको बेहतर प्रयास करना चाहिए ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव को कम करने के लिए। हमें ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन कम करना चाहिए तथा वातावरण में हो रहे कुछ जलवायु परिवर्तन जो वर्षों से चला आ रहा है उन्हें अपनाने की कोशिश करनी चाहिए।

ग्लोबल वार्मिंग से कैसे बचें?

ग्लोबल वार्मिंग के प्रति दुनियाभर में चिंता बढ़ रही है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस साल का नोबेल शांति पुरस्कार पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में कार्य करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेंट चेंज (आईपीसीसी) और पर्यावरणवादी अमेरिका के पूर्व उपराष्ट्रपति अल गोर को दिया गया है। लेकिन सवाल यह है कि क्या पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में काम करने वालों को नोबेल पुरस्कार देने भर से ही ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से निपटा जा सकता है? बिल्कुल नहीं। इसके लिए हमें कई प्रयास करने होंगे :

1- सभी देश क्योटो संधि का पालन करें। इसके तहत 2012 तक हानिकारक गैसों के उत्सर्जन ( एमिशन, धुएं ) को कम करना होगा।

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2- यह जिम्मेदारी केवल सरकार की नहीं है। हम सभी भी पेटोल, डीजल और बिजली का उपयोग कम करके हानिकारक गैसों को कम कर सकते हैं।

3- जंगलों की कटाई को रोकना होगा। हम सभी अधिक से अधिक पेड लगाएं। इससे भी ग्लोबल वार्मिंग के असर को कम किया जा सकता है।

4- टेक्नीकल डेवलपमेंट से भी इससे निपटा जा सकता है। हम ऐसे रेफ्रीजरेटर्स बनाएं जिनमें सीएफसी का इस्तेमाल न होता हो और ऐसे वाहन बनाएं जिनसे कम से कम धुआं निकलता हो।

उपसंहार

ग्लोबल वार्मिंग मानव के द्वारा ही विकसित प्रक्रिया है क्योंकि कोई भी परिवर्तन बिना किसी चीज को छुए अपने आप नहीं होता है। यदि ग्लोबल वार्मिंग को नहीं रोका गया तो इसका भयंकर रूप हमें आगे देखने को मिलेगा,

जिसमें शायद पृथ्वी का अस्तित्व ही ना रहे इसलिए हम मानवों को सामंजस्य, बुद्धि और एकता के साथ मिलकर इसके बारे में सोचना चाहिए या फिर कोई उपाय ढूँढना अनिवार्य है,

Credit: PointPrism Study Centre

क्योंकि जिस ऑक्सीजन को लेकर हमारी साँसें चलती है, इन खतरनाक गैसों की वजह से कहीं वही साँसें थमने ना लगे। इसलिए तकनीकी और आर्थिक आराम से ज्यादा अच्छा प्राकृतिक सुधार जरूरी है। ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए जितने हो सकें उतने प्रयत्न ज़रूर करने चाहिए।

वृक्षारोपण के लिए लोगों को प्रोत्साहित करना चाहिए, जिससे कार्बन-डाइऑक्साइड की मात्रा कम हो सके और प्रदूषण को कम किया जा सके।

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