विद्युत चुम्बकीय स्पेक्ट्रम :
सभी विद्युत चुम्बकीय तरंगो के सभी गुण समान होते है केवल इनकी तरंग दैर्ध्य व आवृति में अंतर होता है।
यदि विद्युत चुंबकीय तरंगो को इनके तरंग दैधर्य के बढ़ते या घटते क्रम में लगा दिया जाए तो इसे विद्युत चुम्बकीय स्पेक्ट्रम कहते है।
1. रेडियो तरंगे :
उत्पादन : चालक तारों में आवेशो की त्वरित गति से उत्पन्न होती है।
उपयोग : रेडियो एवं दूरसंचार व्यवस्था में।
आवृति / तरंग दैर्ध्य :
आयाम मोडलित (AM) तरंगो के प्रसारण के लिए 530 किलो हर्ट्ज़ से 1710 किलो हर्ट्ज़ के बीच प्रसारण होता है। टीवी तरंगो में 54 मेगा हर्ट्ज़ से 890 मेगा हर्ट्ज़ के बीच प्रसारण होता है।
आवृत्ति मॉडुलन (FM) 89 हर्ट्ज़ से 108 हर्ट्ज होता है।
विशेष प्रकार की निर्वात नलिकाओं में कलाइस्टोन , मैग्नेटोन अथवा मंडडोयो कहते है के द्वारा उत्पन्न की जाती है।
उपयोग : रेडिओ तरंगो का वाहक तरंगो के रूप में उपयोग होता है।
तेज गति से चलने वाली गेंद या वाहनों की गति ज्ञात करने वाले उपकरणों में।
माइक्रो वेव ओवनों में सूक्ष्म तरंगों की आवृति इस प्रकार चुनी जाती है कि वे जल के अणुओं की अनुनादी आवृति के बराबर हो जाता है। जिससे तरंगो की ऊर्जा जल युक्त खाद्य पदार्थ का ताप बढ़ा दे।
तरंग दैर्ध्य या आवृति : गीगा हर्ट्ज़ परास पर।
2. अवरक्त तरंगे :
उत्पादन : गर्म पिण्डो एवं अणुओं से उत्पन्न होती है।
उपयोग :
अधिकांश पदार्थो में उपस्थित जल के अणु अवरक्त तरंगो को अवशोषित कर लेते है जिससे इनके ताप में वृद्धि हो जाती है अत: इन्हें ऊष्मा तरंगे भी कहते है।
अवरक्त तरंगो का उपयोग कायक चिकित्सा में किया जाता है।
दिन के समय सूर्य की गर्मी से पृथ्वी का तल गर्म हो जाता है। जब रात्री को पृथ्वी ठण्डी होती है तो विकिरण उत्सर्जित करती है , यह विकिरण अधिकांशतय अवरक्त क्षेत्र में होती है , ये विकिरण वायुमण्डल में उपस्थित कार्बन डाइ ऑक्साइड एवं बादलों से टकराकर वापस पृथ्वी पर आ जाती है जिससे रात्री में पृथ्वी का तल गर्म बना रहता है , इस प्रभाव को हरित गृह प्रभाव कहते है।
इलेक्ट्रॉनिक युक्तियां भी अवरक्त तरंगे उत्सर्जित करती है। घरेलु इलेक्ट्रॉनिक प्रणालियों जैसे टीवी , VCD , DVD के रिमोड में अवरक्त तरंगों का उपयोग किया जाता है।
तरंग दैर्ध्य : एक मिलीमीटर से 700 नैनोमीटर तक।
3. दृश्य प्रकाश तरंगे :
उत्पादन : सबसे अधिक मात्रा में सूर्य से प्राप्त होता है।
इसके अतिरिक्त विद्युत बल मोमबत्ती आदि की ताप दीप्त अवस्था में दृश्य प्रकाश प्राप्त होता है।
उपयोग : वस्तुओं को देखने में।
आवृति = 4 x 1014 हर्ट्ज़ से 7 x 1014 हर्ट्ज़ तक
तरंग दैधर्य : 4.00 × 10–7 to 7.00 × 10–7 m
4. पराबैंगनी किरणें (UV) :
उत्पादन : विशिष्ट लैम्पों एवं बहुत गर्म पिण्डो से उत्पन्न होती है। सूर्य इसका सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है।
उपयोग :
पराबैंगनी किरणें अधिक मात्रा में होने पर हानिकारक प्रभाव उत्पन्न करती है। पराबैंगनी विकिरणों के पड़ने से त्वचा में अधिक मात्रा में मैलानिन का उत्पादन होता है जिससे त्वचा ताम्बे जैसे हो जाती है।
इसकी सुरक्षा के लिए खिड़की एवं दरवाजो पर साधारण कांच लगाना चाहिए क्योंकि काँच पराबैंगनी किरणों को अवशोषित कर लेता है तथा धूप तामृता नहीं होती। वायुमण्डल में उपस्थित ओजोन परत भी पराबैंगनी किरणों को अवशोषित कर लेती है।
वैल्डिंग से निकलने वाली पराबैंगनी किरणों से सुरक्षा के लिए वैल्डिंग कृमि या तो काला चश्मा लगाता है या काँच की खिड़की लगा हुआ मुखौटा लगाता है।
नेत्र शैल्यता में इसका उपयोग किया जाता है।
जल शोधक में भी इसका उपयोग किया जाता है।
आवृति : 4 x 10-7 मीटर से 6 x 10-10 मीटर तक
5. X किरणें
उत्पादन : जब तीव्रगामी इलेक्ट्रॉन किसी ऐसी धातु से टकराते है जिसका परमाणु क्रमांक व गलनांक उच्च हो तो X किरणें उत्पन्न होती है।
उपयोग :
x-किरणों की सहायता से शरीर के भीतरी भागो का चित्र लिया जाता है जिससे रसोली , टूटी हुई हड्डी आदि का पता चलता है।
कैंसर आदि की दूषित कोशिकाओ को x-किरणों द्वारा नष्ट किया जा सकता है।
जब ये जीवित कोशिकाओं पर पडती है तो उन्हें नष्ट कर देती है अत: शरीर के लिए हानिकारक है।
तरंग दैधर्य : 10-8 मीटर से 10-13 मीटर तक
6. गामा किरणें
रेडियो एक्टिव नाभिको के स्वत: विघटन से प्राप्त होती है।
उपयोग :
कैंसर की दूषित कोशिकाओं को नष्ट करने में।
तरंग दैधर्य : 10-10 मीटर से 10-14 मीटर तक
Remark:
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