UP Board Solutions for Class 11 Pedagogy Chapter 24 Individual Differences: Meaning, Kinds, Causes and Measurement (व्यक्तिगत भिन्नताएँ- अर्थ, प्रकार, कारण एवं मापन)

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BoardUP Board
TextbookNCERT
ClassClass 11
SubjectPedagogy
ChapterChapter 24
Chapter NameIndividual Differences: Meaning, Kinds, Causes and Measurement (व्यक्तिगत भिन्नताएँ- अर्थ, प्रकार, कारण एवं मापन)
Number of Questions Solved31
CategoryUP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Pedagogy Chapter 24 Individual Differences: Meaning, Kinds, Causes and Measurement (व्यक्तिगत भिन्नताएँ- अर्थ, प्रकार, कारण एवं मापन)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
व्यक्तिगत भिन्नता से आप क्या समझते हैं ? व्यक्तिगत भिन्नता के मुख्य कारणों का सामान्य परिचय प्रस्तुत कीजिए।
या
व्यक्तिगत भिन्नता का क्या अर्थ है ? इसके मुख्य कारण क्या हैं ? समझाकर लिखिए।
या
व्यक्तिगत भेद किसे कहते हैं? इसके कारणों को स्पष्ट कीजिए।
या
“भिन्नताएँ प्रत्येक व्यक्ति में पायी जाती हैं।” यदि आप इस कथन से सहमत हैं, तो वैयक्तिक विभिन्नता के कारणों का वर्णन कीजिए।
या
व्यक्तिगत विभिन्नताओं के क्या कारण हैं ? विस्तार से समझाइए।
या
व्यक्तिगत भिन्नता के कारणों का उल्लेख कीजिए।
या
व्यक्तिगत विभिन्नता को परिभाषित कीजिए।
या
दो व्यक्तियों में जिन कारणों से व्यक्तिगत भिन्नताएँ पायी जाती हैं, उन्हीं के आधार पर व्यक्तिगत भेद निश्चित किये जाते हैं।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

व्यक्तिगत भिन्नता का अर्थ एवं परिभाषा
(Meaning and Definition of Individual Difference)

व्यक्तिगत भिन्नता का नियम यद्यपि प्राचीनकाल से ही माना जाता रहा है, परन्तु जब से बुद्धि-मापन के परीक्षण प्रारम्भ हुए, तब से इसका महत्त्व काफी बढ़ गया है। व्यक्तिगत भिन्नता को अर्थ है–किन्हीं दो व्यक्तियों का परस्पर एक-सा न होना। भिन्नताएँ प्रत्येक व्यक्ति में पायी जाती हैं। यह भिन्नता जुड़वाँ बालकों तक में पायी जाती है। दूसरे शब्दों में, “व्यक्तिगत भिन्नताओं का अर्थ एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति से रूप-रंग, शारीरिक गठन, बुद्धि, विशिष्ट योग्यताओं, रुचियों, उपलब्धियों, स्वभाव, व्यक्तित्व के गुणों आदि में भिन्नता से है। कोई भी दो व्यक्ति शारीरिक गठन, बुद्धि, रुचियों, व्यक्तित्व के गुणों आदि में समान नहीं पाये जाते हैं।”

व्यक्तिगत भिन्नता की प्रमुख परिभाषाएँ निम्नांकित हैं-

  1. जेम्स ड्रेवर के अनुसार, “औसत समूह से मानसिक, शारीरिक विशेषताओं के सन्दर्भ में समूह के सदस्य के रूप में भिन्नता या अन्तर को वैयक्तिक भिन्नता कहते हैं।”
  2. स्किनर के अनुसार, “मापन किया जाने वाला व्यक्तित्व का प्रत्येक पक्ष वैयक्तिक भिन्नता का अंश हैं।”
  3. टॉयलर के अनुसार, “शरीर के आकार और रूप, शारीरिक कार्य, गति की क्षमताओं, बुद्धि, उपलब्धि, ज्ञान, रुचियों, अभिवृत्तियों और व्यक्तित्व के लक्षणों में मापी जाने वाली भिन्नताओं को वैयक्तिक भिन्नताओं के अन्तर्गत रखा जा सकता है।”

व्यक्तिगत विभिन्नताओं के कारण
(Causes of Individual Differences)

व्यक्तिगत विभिन्नताओं के अनेक कारण हैं जिनमें प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं

1. वंशानुक्रम- कुछ मनोवैज्ञानिकों के अनुसार व्यक्तिगत भिन्नताओं का मूल कारण वंशानुक्रम है। प्रायः देखा गया है कि बुद्धिमान माता-पिता की सन्तान बुद्धिमान होती है और मन्द-बुद्धि माता-पिता की सन्तान मन्द-बुद्धि। अपराधी व्यक्ति की सन्तान में भी अपराध की प्रवृत्ति पायी जाती है। इसी प्रकार कुछ अन्य गुण-अवगुणों का भी हस्तान्तरण आनुवंशिक रूप से होता रहता है।

2. वातावरण- व्यक्तिगत भिन्नता का अन्य महत्त्वपूर्ण कारण वातावरण है। भौतिक वातावरण द्वारा व्यक्ति की लम्बाई, रंग, रूप तथा आचार-विचार प्रभावित होते हैं, जबकि सामाजिक वातावरण व्यक्ति की सामाजिक मान्यताओं का निर्धारण करता है। वातावरण की भिन्नता के कारण ही ठण्डे देश के निवासी गोरे, लम्बे तथा शक्तिवान होते हैं, उनमें श्रम करने की प्रवृत्ति होती है। इसके विपरीत गरम देशों के व्यक्ति काले, ठिगने तथा आलसी होते हैं।

3. लिंग-भेद- लिंग-भेद के कारण ही बालक और बालिकाओं की शारीरिक बनावट, सोचने-विचारने तथा बौद्धिक क्षमताओं में अन्तर पाया जाता है। बालकों में शारीरिक कार्य करने की अधिक क्षमता होती है तो बालिकाओं में सहनशीलता का गुण अधिक मात्रा में पाया जाता है। बालिकाओं की स्मरण शक्ति बालकों की अपेक्षा तीव्र होती है। यदि बालक गणित और विज्ञान में अधिक कुशाग्र होते हैं तो बालिकाएँ साहित्य और कला में विशेष निपुण होती हैं। बालिकाओं का हस्तलेख बालकों से अधिक सुन्दर और आकर्षक होता है।

4. जाति, प्रजाति और देश- जाति, प्रजाति और देश का भी व्यक्तिगत विभिन्नताओं पर विशेष प्रभाव पड़ता है। वैश्य व्यापार में निपुण होते हैं, तो ब्राह्मण अध्ययन और अध्यापन में। क्षत्रिय अपनी युद्धप्रियता के लिए प्रसिद्ध हैं। इसी प्रकार प्रादेशिक भिन्नता भी प्रभाव डालती है। भारत में प्रादेशिक भिन्नता का प्रभाव विशेष रूप से देखा जा सकता है।

5. आयु और बुद्धि का प्रभाव- आयु और बुद्धि का प्रभाव भी व्यक्तिगत भिन्नता पर पड़ता है। आयु के आधार पर ही बालक को शारीरिक, मानसिक और भावात्मक विकास होता है। इस प्रकार आयु के कारण भी बालकों में भिन्नता पायी जाती है। बुद्धि जन्मजात गुण है। अत: कोई बालक प्रतिभाशाली होता है, तो कोई मूढ़।

6. शिक्षा और आर्थिक दशा- शिक्षा व्यक्ति में पर्याप्त परिवर्तन कर देती है। जो व्यक्ति साक्षर होते हैं, वे निरक्षर व्यक्तियों से काफी भिन्नताएँ रखते हैं। शिक्षित व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास निरक्षर व्यक्ति की अपेक्षा अधिक अच्छा होता है। शिक्षा के समान ही आर्थिक दशा का प्रभाव भी व्यक्तिगत भिन्नता पर पड़ता है। अक्सर निर्धन बालक अभावग्रस्त और लालची होते हैं। उनमें हीनता की भावना भी पायी जाती है, परन्तु धन की अधिकता भी बालकों को भ्रष्ट कर देती है।

प्रश्न 2
बालकों में पायी जाने वाली व्यक्तिगत भिन्नता को ध्यान में रखते हुए अध्यापक को शिक्षण-कार्य में किन-किन व्यवस्थाओं को लागू करना चाहिए ?
या
व्यक्तिगत भिन्नताओं के कारण शिक्षक को मुख्य रूप से किन-किन बातों को ध्यान में । रखना चाहिए ?
या
शिक्षा के क्षेत्र में व्यक्तिगत भिन्नता की भूमिका एवं महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
या
“व्यक्तिगत भेदों के ज्ञान ने शिक्षा की व्यवस्था को प्रभावशाली बनाया है।” आप इस कथन से कहाँ तक सहमत हैं ?
या
“व्यक्तिगत भिन्नताओं के ज्ञान ने शिक्षा को अत्यधिक प्रभावित किया है।” कैसे?
या
“व्यक्तिगत भिन्नता का ज्ञान शिक्षक के लिए अत्यन्त उपयोगी है।” स्पष्ट कीजिए।
या
पाठ्यक्रम, छात्रों के वर्गीकरण और शिक्षण-विधियों में व्यक्तिगत भिन्नताओं को कैसे समायोजित किया जा सकता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:

व्यक्तिगत भिन्नताएँ तथा शिक्षा
(Individual Differences and Education)

आधुनिक युग में शिक्षा के क्षेत्र में व्यक्तिगत भिन्नताओं को विशेष महत्त्व दिया जाता है। बालक की व्यक्तिगत रुचियों, क्षमताओं, इच्छाओं तथा मानसिक योग्यताओं को ध्यान में रखकर ही शिक्षा का आयोजन करना आवश्यक है। इस दशा में अध्यापक को अग्रलिखित बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए

1. उचित वर्गीकरण- प्रायः विद्यालय में परम्परागत विधि के अनुसार बालकों का कंक्षाओं में विभाजन किया जाता है। परन्तु यह विभाजन सर्वथा गलत है, क्योंकि विद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों की आयु में ही अन्तर नहीं होता, वरन् शारीरिक व मानसिक दृष्टि से भी उनमें अन्तर होता है। अतः ऐसी दशा में बालकों की विशेषताओं के अनुसार उनको । विभाजन समरूप समूहों में किया जाना चाहिए। वर्गीकरण में मानसि योग्यताओं को ध्यान में रखना आवश्यक है। प्रत्येक कक्षा में प्रतिभाशाली, सामान्य तथा निम्न मानसिक क्षमताओं वाले बालकों को तीन समूहों में विभाजित किया जाना चाहिए।

2. कक्षा का सीमित आकार- वर्तमान समय में शिक्षा की हीन दशा का प्रमुख कारण कक्षा में छात्रों को आवश्यकता से अधिक संख्या में होना है। जब कक्षा में छात्रों की संख्या 50 से 60 तक होती है तो अध्यापक के लिए उनसे व्यक्तिगत सम्पर्क रखना कठिन हो जाता है। अध्यापक न तो व्यक्तिगत रूप से उन बालकों की समस्याओं को समझ पाता है और न ही छात्र अध्यापक से अपनी शंकाओं का समाधान कर पाते हैं। अत: कक्षाओं में छात्रों की संख्या 20 से 30 के बीच में होनी चाहिए।

3. विस्तृत पाठ्यक्रम- बालकों की आकाँक्षाओं, रुचियों और क्षमताओं में पर्याप्त अन्तर होता है। अत: सबके लिए एक-सा पाठ्यक्रम निर्धारित करना उनकी व्यक्तिगत विभिन्नताओं की उपेक्षा करना है। अतः पाठ्यक्रम विस्तृत और लचीला बनाया जाए, जिससे छात्र अपनी-अपनी रुचि के अनुकूल विषयों का चुनाव कर सकें।

4. व्यक्तिगत शिक्षण की व्यवस्था- बालकों में मानसिक भिन्नताएँ पायी जाती हैं। अत: उन्हें सामूहिक शिक्षण द्वारा ज्ञान प्रदान करना निरर्थक है। उनकी मानसिक क्षमताओं को ध्यान में रखकर व्यक्तिगत शिक्षण की व्यवस्था करना अत्यन्त आवश्यक है। डाल्टन योजना तथा बिने योजनाओं का निर्माण इसी उद्देश्य से किया गया है।

5. गृह-कार्य- बालकों को गृहकार्य उनकी शारीरिक और मानसिक क्षमताओं को ध्यान में रखकर ही प्रदान किया जाए। जो बालक प्रतिभाशाली हैं, उन्हें गृह-कार्य अधिक प्रदान किया जाए तथा मन्दबुद्धि और निर्बल शरीर वाले बालकों को कम गृह-कार्य प्रदान किया जाए।

6. शिक्षण-विधि- शिक्षण विधियों का निर्माण भी व्यक्तिगत भिन्नताओं के आधार पर ही किया जाना चाहिए। कुशाग्र बुद्धि का बालक एक मूर्ख की अपेक्षा शीघ्र सीख जाता है। अत: दोनों को शिक्षा प्रदान करने की विधियों में अन्तर होना चाहिए। मन्दबुद्धि वाले बालकों के साथ विशेष सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार की आवश्यकता है।

7. रुचियों पर ध्यान- विद्यालय में अध्ययन करने वाले बालकों की विभिन्न रुचियाँ होती हैं। अतः उनकी रुचियों के विषय में अध्यापक को अवश्य जानकारी रखनी चाहिए तथा उनके समुचित विकास की चेष्टा भी करनी चाहिए। टी० पी० नन (T: P Nunn) के अनुसार, “हमें बालकों को एक ही रुचि में ढाली गयी मशीनों का स्वरूप नहीं देना है, क्योंकि प्रत्येक की अलग-अलग सत्ता है और व्यक्तिगत सत्ता के अनुसार ही उनकी रुचियाँ हैं, अत: उनका विनाश न करके उन्हें प्रोत्साहन देना चाहिए।’

8. शारीरिक अयोग्यता का ध्यान- बालकों की शारीरिक समर्थताओं तथा अयोग्यताओं का पूरा-पूरा ध्यान रखना आवश्यक है। कक्षा में कुछ बालक ऐसे होते हैं, जिन्हें कम सुनाई देता है तथा कुछ की दृष्टि कमजोर होती है। ऐसे बालकों को कक्षा में आगे बैठाना चाहिए। इसी प्रकार कुछ बालक शारीरिक दृष्टि से अत्यन्त निर्बल होते हैं। ऐसे बालकों के पढ़ने के बीच में पर्याप्त विश्राम दिया जाए तथा उन्हें गृह-कार्य भी कम दिया जाए तथा समय-समय पर ऐसे बालकों की डॉक्टरी जाँच कराई जाए।

9. आर्थिक और सामाजिक स्तर का ध्यान- बालकों के परिवारों के आर्थिक और सामाजिक स्तरों का उनके रहन-सहन, आचार-विचार तथा दृष्टिकोणों पर विशेष प्रभाव पड़ता है। ये प्रभाव ही उनमें व्यक्तिगत भिन्नताएँ उत्पन्न करते हैं। अत: अध्यापकों को बालकों के आर्थिक और सामाजिक स्तर का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए तथा उसी आधार पर उनकी शिक्षा का आयोजन किया जाना चाहिए।

10. लिंग-भेद का ध्यान- बालक और बालिकाओं की रुचियों, आवश्यकताओं और क्षमताओं में पर्याप्त अन्तर होता है। अत: दोनों के पाठ्यक्रमों में अन्तर अवश्य होना चाहिए। शिक्षा प्रदान करते समय भी लिंग-भेद का ध्यान अवश्य रखना चाहिए। उपर्युक्त विवरण द्वारा स्पष्ट है कि शिक्षा के क्षेत्र में व्यक्तिगत भिन्नता की उल्लेखनीय भूमिका एवं महत्त्व है। यही कारण है कि हम कहते हैं कि व्यक्तिगत भेदों के ज्ञान ने शिक्षा की व्यवस्था को प्रभावशाली बनाया है।

प्रश्न 3
विभिन्न आधारों पर किये गये व्यक्तिगत भिन्नताओं के वर्गीकरण का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
या
वैयक्तिक विभिन्नता के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
या
शेल्डन के अनुसार व्यक्तित्व के प्रकार का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

व्यक्तिगत भिन्नताओं का वर्गीकरण
(Classification of Individual Differences)

व्यक्तिगत भिन्नता के सम्बन्ध में टरमन ने लिखा है, “उच्च योग्यता वालों या प्रतिभाशाली बालकों में कुछ सीमा तक अपनी अनेक योग्यताओं के मामले में अपने ही भीतर या अन्य व्यक्तियों के साथ भिन्नताएँ होती हैं।” व्यक्तियों में निम्नांकित प्रकार की भिन्नताएँ पायी जाती हैं’

1. शारीरिक भिन्नता- शरीर की बनावट, रूप, रंग, आकृति, यौन में अन्तर को शारीरिक भिन्नता कहते हैं। शरीर के स्वास्थ्य एवं अंगों की क्रियाशीलता में भेद होने से शारीरिक भिन्नता पायी जाती है। भिन्न-भिन्न विद्वानों ने व्यक्ति में विभिन्न भिन्नताएँ पायी हैं और उसके अनुसार उन्हें निम्न वर्गों में बाँटा है

(i) क्रेश्मर का वर्गीकरण

  1. ऐथलेटिक- मजबूत हड्डी, स्वस्थ मांसपेशियों, चौड़े सीने, लम्बे हाथ-पैर और लम्बे चेहरे वाले, क्रियाशील, चिन्तारहित, उचित रूप से समायोजित करने वाले।
  2. ऐसथेनिक- लम्बे, पतले हाथ-पैर वाले, तिकोने चेहरे, चपटे सीने और छोटी ठोढ़ी वाले, अपनी निन्दा न सुनने वाले, दूसरों की निन्दा करने वाले।
  3. पिकनिक- बड़े सिर और धड़ वाले, छोटे पैर, गोल सीने व कन्धे, छोटे हाथ-पैर वाले।
  4. डिसप्लास्टिक- असाधारण शरीर वाले, रोगग्रस्त, ग्रन्थि रोग वाले, उपर्युक्त तीनों प्रकार के लोगों का मिश्रण।

(ii) केनन का वर्गीकरण

  1. थायरॉइड ग्रन्थि-प्रधान-पर्याप्त शक्ति वाले, स्वस्थ, ओजस्वी व्यक्ति।
  2. थायरॉइड ग्रन्थि से न्यून स्राव वाले-कमजोर, अस्वस्थ, आलसी, क्रियाहीन व्यक्ति।
  3. एड्रीनल ग्रन्थि-प्रधान-बहादुर, लड़ाकू, क्रोधी, साहसी, कर्मठ व्यक्ति।
  4. पिट्यूटरी ग्रन्थि-प्रधान-क्रियाशील, हँसी-मजाक में निपुण, प्रसन्नचित्त व्यक्ति।
  5. गोनाड ग्रन्थि-प्रधान-अधिक क्रियाशील, कामुक, नाटे, स्वस्थ व्यक्ति।

(iii) शेल्डन का वर्गीकरण

  1. कोमल, गोल तथा मोटे शरीर वाले व्यक्ति।
  2. हृष्टपुष्ट, शक्तिशाली, भारी और मजबूत व्यक्ति।
  3. लम्बे आकार वाले, शक्तिहीन, दुर्बल मांसपेशियों वाले, शीघ्र उत्तेजित होने वाले व्यक्ति।

(iv) वार्नर का वर्गीकरण

  1. सामान्यतया स्वस्थ, सुडौल, गठीले शरीर वाले व्यक्ति।
  2. अविकसित अंग वाले, छोटे हाथ, पैर, गर्दन वाले व्यक्ति।
  3. असन्तुलित शरीर वाले, निर्बल, अपरिपुष्ट व्यक्ति।
  4. स्नायुविक गड़बड़ी वाले, शीघ्र घबराने वाले व्यक्ति।
  5. अंगहीन, हाथ, पैर, आँख, कान ठीक न होने वाले व्यक्ति
  6. आलसी, सुस्त, इच्छाविहीन, निर्जीव से व्यक्ति।
  7. पिछड़े हुए, आयु के अनुकूल कार्य करने में असमर्थ व्यक्ति।
  8. प्रतिभाशाली, अपनी आयु से अधिक कार्य करने वाले व्यक्ति।
  9. मिर्गी रोगग्रस्त व्यक्ति।
  10. स्नायु रोगग्रस्त व्यक्ति।

2. बौद्धिक भिन्नता- टरमन (Turman) ने बुद्धिलब्धि निकालकर निम्नलिखित भिन्नताएँ बतायी।

           प्रकारे                                        बुद्धिलब्धि

  1. अति प्रतिभाशाली               200 या इससे अधिक
  2. प्रतिभाशाली                       140 से 200 तक
  3. अति उत्कृष्ट                       120 से 140 तक
  4. उत्कृष्ट                               110 से 120 तक
  5. साधारण                            90 से 110 तक
  6. मन्दबुद्धि                           80 से 90 तक
  7. निर्बल बुद्धि                       70 से 80 तक
  8. हीन बुद्धि                          70 से कम
  9. मूर्ख                                  50 से 70 तक
  10. मूढ़                                   20 से 50 तक
  11. जड़                                  20 से कम

3. मानसिक योग्यताओं की भिन्नता- व्यक्ति संवेदनशीलता, प्रत्यक्षीकरण, निरीक्षण, स्मरण, कल्पना, चिन्तन, तर्क, अधिगम आदि मानसिक योग्यताओं में भिन्न पाये जाते हैं। कुछ बड़े संवेदनशील होते हैं, कुछ तीव्र स्मरण करने वाले होते हैं, कुछ बड़े तार्किक होते हैं, कुछ की कल्पना-शक्ति बहुत तीव्र होती है, कुछ देर से सीखते हैं आदि। कुछ मनोवैज्ञानिकों द्वारा इस सम्बन्ध में किये गए वर्गीकरण इस प्रकार हैं—

(i) थॉर्नडाइक का वर्गीकरण- यह वर्गीकरण विचारशक्ति पर आधारित है

  1. सूक्ष्म विचारक; जैसे-गणितज्ञ, तर्कशास्त्री, वैज्ञानिक।
  2. प्रत्यय विचारक; जैसे-कवि, साहित्यकार, नाटककार।
  3. स्थूल विचारक; जैसे-वस्तुओं के साथ विचार करने वाले।
  4. ज्ञानेन्द्रिय-प्रधान विचारक; जैसे-आँख से देखकर समझने वाले।

(ii) थॉर्नडाइक का कल्पना- शक्ति पर आधारित वर्गीकरण

  1. दर्शनालु अर्थात् आँख की इन्द्रिय-प्रधान व्यक्ति।
  2. श्रवणालु अर्थात् कान की इन्द्रिय-प्रधान व्यक्ति।
  3. गमनालु अर्थात् क्रिया, इन्द्रिय-प्रधान व्यक्ति।
  4. स्पर्शालु, अर्थात् त्वक इन्द्रिय-प्रधान व्यक्ति।
  5. घृणालु अर्थात् नासिको इन्द्रिय-प्रधान व्यक्ति।
  6. मिश्रित अर्थात् कई इन्द्रियों को एक-साथ मिलाकर कार्य करने वाले व्यक्ति।

(iii) स्टीफेन्सन का वर्गीकरण- इनका वर्गीकरण बाह्य उत्तेजकों द्वारा मस्तिष्क पर पड़ने वाले प्रभावों पर आधारित है

  1. प्रसारक- अर्थात् स्थायी प्रभाव वाले व्यक्ति।
  2. अप्रसारक-अर्थात् क्षणिक प्रभाव वाले व्यक्ति।

4. स्वभावगत भिन्नता- व्यक्तियों में स्वभावगत भिन्नता भी पायी जाती है। इसका ज्ञान मनोवैज्ञानिकों द्वारा दिये गये वर्गीकरण से होता है। इनका विवरण इस प्रकार है

(i) मॉर्गन और गिलीलैण्ड का वर्गीकरण- यह वर्गीकरण मनोभावों पर आधारित है-

  1. प्रफुल्ल, जो हमेशा हँसने वाले, आशावादी, गम्भीरतारहित काम करने वाले, संकट में प्रसन्न रहने वाले, जीवन को खेल समझने वाले होते हैं।
  2. उदास, जो सदैव दु:खी रहते हैं और निराशावादी अभिवृत्ति रखते हैं।
  3. चिड़चिड़े जो छोटी-छोटी बातों में खीझ उठते हैं, जल्दी क्रुद्ध हो जाते हैं और मजाक को सहन नहीं करते हैं।
  4. अस्थिर, जो शीघ्र क्रुद्ध, शीघ्र प्रसन्न, शीघ्र दुःखी, अनियन्त्रित भावना वाले होते हैं।

(ii) गैलन का वर्गीकरण- यह शारीरिक क्रियाओं पर आधारित है

  1. अति रुधिरयुक्त, जो अत्यन्त संवेदनशील, परिवर्तनशील, शीघ्र उत्तेजित होने वाले, उत्साही एवं कार्य करने वाले होते हैं।
  2. पीतपित्त-प्रधान, जो क्रोधी, वीर, साहसी, हठी, दृढ़-प्रतिज्ञ तथा कठोर स्वभाव वाले होते हैं।
  3. श्याम पित्त-प्रधान, जो दुःखी, चिन्तित, हतोत्साही, निराशावादी तथा कार्य में अरुचि रखने वाले होते हैं।
  4. कफ-प्रधान, जो आलसी, सुस्त, कम संवेदनशील, काम से भागने वाले तथा परिश्रमहीन होते हैं।

(iii) शेल्डन का वर्गीकरण- यह स्वाभाविक गुणों पर आधारित है-

  1. आलसी, जो आराम-पसन्द, निद्रा-प्रेमी, पराश्रित, परामुखी तथा काम न करने वाले होते हैं।
  2. कर्मठ, जो सक्रिय, परिश्रमी, साहसी, अधिकार-प्रेमी, कार्यरत तथा शक्तिशाली होते हैं।
  3. संयमी, जो अपने पर नियन्त्रण रखने वाले, संकोची, कार्याभ्यस्त तथा एकान्त प्रेमी होते हैं।

5. सामाजिकता सम्बन्धी भिन्नता- व्यक्तियों में सामाजिकता अधिक या कम होती है। कुछ अपने आप में, कुछ दूसरों में और कुछ अपने तथा दूसरों में बराबर-बराबर रुचि रखते हैं। प्रोफेसर गुंग ने व्यक्तियों को तीन वर्गों में विभक्त किया है-

  1. अन्तर्मुखी- जो आत्म-केन्द्रित, समाज के कार्यों में रुचि न लेने वाले, एकान्त प्रेमी, भविष्य की चिन्ता अधिक करने वाले, अधिक सोच-विचार करने वाले, देर से निर्णय लेने वाले, अव्यावहारिक तथा चिन्ता से घिरे होते हैं।
  2. बहिर्मुखी- जो सामाजिक कार्यों में भाग लेने वाले, दूसरों की भलाई में लगे रहने वाले, अकेले ऊबने वाले, व्यवहार-कुशल, सक्रिय, शीघ्र निर्णय लेने वाले, दृढ़ निश्चयी, मिलनसार, नेता, प्रशासक तथा वक्ता होते हैं।
  3. उभयमुखी- इनमें उपर्युक्त दोनों प्रकार के गुणों से सम्पन्न व्यक्ति होते हैं। अधिकांश व्यक्ति इसी वर्ग में आते हैं।

6. सीखने की क्षमता में भिन्नता- एबिंगहास ने अनेक परीक्षणों के बाद यह निष्कर्ष निकाला है कि विभिन्न आयु के बालकों एवं वयस्कों में भी सीखने की क्षमता भिन्न पायी जाती है। कोई बालक जल्दी सीखता है तो कोई देर से। कक्षा में एक बात को कुछ बालक जल्दी समझने लगते हैं और दूसरों को बहुत समय लगता है।

7. रुचि की भिन्नता- प्रत्येक व्यक्ति की रुचि दूसरे की रुचि से भिन्न होती है। कुछ बालक पढ़ने में रुचि रखते हैं तो कुछ वैज्ञानिक कार्य करने और कुछ शिल्प-कार्यों में।

8. अभिरुचि की भिन्नता- कुछ व्यक्ति संगीत में अभिरुचि रखते हैं, तो दूसरे हस्तकौशल या तकनीकी कार्यों में। वकील, डॉक्टर, मास्टर, इंजीनियर, कारीगर, क्लर्क व प्रशासक में अभिरुचि की भिन्नता पायी जाती है।

9. चारित्रिक भिन्नता- आचरण, व्यवहार, अभिवृत्ति, आदत, स्थायी भाव ये सब मिलकर चरित्र को निर्माण करते हैं। चोर, लुटेरे, अपराधी, हत्यारे, उदार, दृढ़ प्रतिज्ञ, कृत संकल्पी, शीलवान, लज्जाशील चारित्रिक भिन्नता के व्यक्ति होते हैं।

10. ज्ञानात्मक भिन्नता- व्यक्ति प्रायः व्यावहारिक एवं सैद्धान्तिक ज्ञान वाले होते हैं। व्यावहारिक ज्ञान के कारण संसार के क्रिया-कलापों में, विषम परिस्थितियों में और पारस्परिक सम्पर्क में व्यक्ति आगे बढ़ता है। सैद्धान्तिक ज्ञान-भाषा, गणित, इतिहास, भूगोल, विज्ञान, तकनीकी, वाणिज्य, कृषि आदि का ज्ञान होता है। ज्ञान की भिन्नता आयु, बुद्धि, सामाजिक व आर्थिक स्थिति, सीखने के अवसर व प्रेरणा आदि पर कम या अधिक हो सकती है। व्यावहारिक ज्ञान वास्तविक परिस्थितियों में कार्य करने से मिलता है।

11. व्यक्तित्व की भिन्नता- व्यक्ति के विभिन्न गुणों के समूह का मनोवैज्ञानिक नाम व्यक्तित्व होता है। सभी व्यक्तियों में सभी गुण नहीं होते हैं। व्यक्तित्व की भिन्नता के निम्नलिखित वर्ग हैं

(i) स्पेल्जर का वर्गीकरण- इन्होंने छह प्रकार के व्यक्तियों का उल्लेख किया है-

  1. ऐन्द्रिय सुख चाहने वाला, जो अपनी इन्द्रियों को सतुष्ट करने में संलग्न रहे; जैसे-लोभी, लालची, कामी, घूसखोर, कालाबाजारी, तस्कर, व्यापारी, बेईमान आदि।
  2. धन से प्रेम रखने वाला, जो व्यापार एवं वाणिज्य में दिन-रात लगा रहता है और धन कमाने के पीछे तन-मन सब कुछ खराब कर देता है।
  3. चिन्तन-मनन करने वाला, जो दार्शनिक, वैज्ञानिक, साहित्यिक, अध्ययन में, शोध कार्य में अपना सारा समय लगता है।
  4. राजनीति में संलग्न रहने वाला, जो शासन के कार्यों में, दलबन्दी करने में, दाँव-पेंच व घात-प्रतिघात में लगा हुआ पाया जाता है।
  5. समाज के कार्यों में लगा रहने वाला, जो जाति-पाँति से दूर सभी समाजों के समस्त कार्यों में सजग रूप में लगा रहता है।
  6. धर्मनिष्ठ, जो ईश्वर के भजन, पूजा-पाठ, स्थान-ध्यान, रोजा-नमाज व चर्च की सेवा में लगा पाया जाता है।

(ii) सामान्य वर्गीकरण- इनके तीन वर्ग हैं-

  1. भाव-प्रधान व्यक्ति, जो जल्दी ही संवेदनशील हो उठते हैं। कोमल हृदय वाले होते हैं; जैसे-कवि, सेवक, भक्त, दयालु।
  2. विचार-प्रधान व्यक्ति, जो जीवन की समस्याओं के सम्बन्ध में काफी सोच-विचार और चिन्तन किया करते हैं; जैसे–दार्शनिक, लेखक, वैज्ञानिक आदि।
  3. हिंसा-प्रधान व्यक्ति, जो अपने जीवन में क्रिया ही करना पसन्द करते हैं; जैसे-सैनिक, खिलाड़ी श्रमिक, कारीगर आदि।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
व्यक्तिगत भिन्नताओं की प्रकृति का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
व्यक्तिगत भिन्नताओं की प्रकृति- व्यक्तिगत भिन्नताओं की प्रकृति निम्न प्रकार की होती

  1. व्यक्तिगत भिन्नताएँ सर्वव्यापी होती हैं। विश्व के सभी देशों के लोगों में ये भिन्नताएँ पायी जाती हैं।
  2. व्यक्तिगत भिन्नता व्यक्ति के प्रत्येक गुण में पायी जाती है। भिन्नता की मात्रा में अन्तर-हो सकता है।
  3. व्यक्तिगत भिन्नता व्यक्ति के प्रत्येक गुण की सभी किस्मों में पायी जाती है; जैसे—काले रंग की कई किस्में होती हैं और प्रत्येक किस्म में कुछ-न-कुछ भेद दिखायी देता है।
  4. व्यक्तिगत भिन्नता जन्म के बाद बढ़ती जाती है। जन्म के समय प्रायः सभी प्राणी एक-समान दिखायी देते हैं, परन्तु बाद में उनमें भिन्नता स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है।
  5. व्यक्तिगत भिन्नता का मूल स्रोत वंशानुक्रम है। विशेषकर व्यक्तियों में पर्यावरण की भिन्नता के बाद में व्यक्तिगत भिन्नता में वृद्धि होती है।
  6. व्यक्तिगत भिन्नता व्यक्तियों के लक्षणों व संगठन में भी पायी जाती है। इसी कारण व्यक्तित्व में भिन्नता देखने को मिलती है।
  7. व्यक्तिगत भिन्नता का अनुपात सदैव बदलता रहता है। इसीलिए दो व्यक्तियों के बीच पायी जाने. वाली भिन्नता सदैवं एक-समान नहीं रहती है।
  8. व्यक्तिगत भिन्नता से व्यक्ति के व्यवहार में भी परिवर्तन होता रहता है और तदनुरूप उसके व्यक्तित्व का निर्माण होता है।

प्रश्न 2
व्यक्तिगत भिन्नताओं के मुख्य आधारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

व्यक्तिगत भिन्नता के आधार
(Bases of Individual Difference)

व्यक्तिगत भिन्नता के निम्नलिखित आधार हैं-

  1. शारीरिक रचना- शरीर की रचना के आधार पर हम व्यक्तिगत भिन्नता निश्चित करते हैं। शरीर रचना की दृष्टि से लम्बे, नाटे, मोटे, पतले आदि व्यक्ति होते हैं। रंग-रूप में भी भिन्नता पायी जाती है।
  2. मानसिक योग्यताएँ- बुद्धि, स्मृति तथा उपलब्धि परीक्षणों से ज्ञात हुआ है कि व्यक्तियों में काफी अन्तर पाया जाता है। कोई निम्न बुद्धि का, कोई तीव्र बुद्धि का, अधिकतर सामान्य बुद्धि के होते हैं। कुछ शिल्पी, कुछ दार्शनिक तो कुछ वैज्ञानिक होते हैं।
  3. रुचि-पढ़ने- लिखने, खाने-पीने, वस्त्र-आभूषण पहनने, खेलने-कूदने आदि में लोग भिन्न रुचि रखते हैं। इस आधार पर भी व्यक्तिगत भिन्नता का निर्धारण किया जाता है।
  4. सीखना- सीखने के आधार पर भी व्यक्तिगत भिन्नता पायी जाती है। कोई जल्दी सीखता है, तो कोई देर से सीखता है। यही नहीं कोई व्यक्ति त्रुटिरहित ढंग से सीखता है जबकि कोई व्यक्ति सीखने में अधिक त्रुटियाँ करता है।
  5. व्यक्तित्व- व्यक्तित्व के लक्षणों के आधार पर कोई रूढ़िवादी विचार का, कोई ईमानदार, कोई प्रचारक, कोई परिश्रमी, कोई आलसी, कोई सामाजिक और कोई अन्तर्मुखी व्यक्तित्व वाला कहा जाता है।
  6. क्षमता व उपलब्धि- इसके आधार पर कोई वैज्ञानिक, कोई कवि, कोई चित्रकार, कोई संगीतज्ञ, कोई अधिक या कोई कम उपलब्धि वाला होता है।
  7. स्वभाव के आधार पर- कुछ क्रोधी, कुछ प्रसन्नचित्त, कुछ चिड़चिड़े या लड़ाकू होते हैं।
  8. विशिष्टता- ऐसा देखने में आता है कि कोई बालक सभी विषयों में अच्छा होते हुए भी भाषा में कमजोर हो सकता है। इसके विपरीत कोई अन्य बालक गणित में तेज होते हुए भी कला में कमजोर हो सकता है। यह भिन्नता विशिष्टता पर आधारित है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
व्यक्तिगत भेद के प्रकारों को स्पष्ट कीजिए।
या
व्यक्तिगत भेद कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर:
व्यक्ति के समस्त पक्षों में पायी जाने वाली भिन्नताओं के आधार पर ही व्यक्तिगत भेदों के प्रकारों का निर्धारण किया जाता है। इस प्रकार व्यक्तिगत भिन्नता या भेद के मुख्य प्रकार हैं-शारीरिक भिन्नता, बौद्धिक भिन्नता, मानसिक भिन्नता, स्वभावगत भिन्नता, सामाजिकता-सम्बन्धी भिन्नता, सीखने की क्षमता सम्बन्धी भिन्नता, रुचि की भिन्नता, अभिरुचि की भिन्नता, चारित्रिक भिन्नता, ज्ञानात्मक भिन्नता तथा व्यक्तित्व सम्बन्धी भिन्नता।

प्रश्न 2
व्यक्तिगत भिन्नता के मापन के लिए अपनायी जाने वाली परीक्षण विधि का सामान्य विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
विभिन्न परीक्षण व्यक्ति के विभिन्न गुणों को मापते हैं; जैसे-शारीरिक परीक्षण शरीर सम्बन्धी गुणों को मापते हैं। बुद्धि परीक्षण बुद्धि को मापते हैं। क्षमता परीक्षण विशिष्ट योग्यताओं को मापते हैं। उपलब्धि परीक्षण विभिन्न विषयों के ज्ञान को मापते हैं। संवेग परीक्षण व्यक्ति के संवेगों का मापन करते हैं। निदानात्मक परीक्षण व्यक्ति की विषय सम्बन्धी कमजोरियों को परखते हैं। अभिवृत्ति परीक्षण विशेष प्रवृत्तियों की जाँच करते हैं। रुचि परीक्षण विभिन्न कामों में व्यक्ति की रुचि को बताते हैं। व्यक्तित्व परीक्षण व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, भावात्मक गुणों तथा लक्षणों का मापन करते हैं।

प्रश्न 3
व्यक्तिगत भिन्नताओं के अध्ययन के लिए अपनायी जाने वाली विधि व्यक्ति-इतिहास विधि का सामान्य परिचय दीजिए।
उत्तर:
व्यक्तिगत भिन्नताओं के अध्ययन के लिए अपनायी जाने वाली एक विधि व्यक्ति-इतिहास विधि’ भी है। यह विधि मुख्य रूप से समस्यात्मक बालकों के व्यक्तित्व सम्बन्धी अध्ययनों के लिए अपनायी जाती है। इस अध्ययन विधि के अन्तर्गत व्यक्ति-विशेष से सम्बन्धित अनेक सूचनाएँ एकत्रित की जाती हैं; यथा-उसका शारीरिक स्वास्थ्य, संवेगात्मक स्थिरता, सामाजिक जीवन आदि। व्यक्ति के भूतकालीन जीवन के अध्ययन द्वारा उसकी वर्तमान मानसिक व व्यावहारिक संरचना को समझने का प्रयास किया जाता है। इन सूचनाओं को इकट्ठा करने में व्यक्ति-विशेष के माता-पिता, अभिभावक, सगे-सम्बन्धी, मित्र-पड़ोसी तथा चिकित्सकों से सहायता ली जाती है। इन सभी सूचनाओं, बुद्धि परीक्षण तथा रुचि परीक्षण के आधार पर व्यक्ति विशेष के व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है। इस प्रकार किसी व्यक्ति के वर्तमान व्यवहार की असामान्यताओं के कारणों की खोज उसके भूतकाल के जीवन से करने में व्यक्ति-इतिहास विधि उपयोगी सिद्ध होती है।

प्रश्न 4
व्यक्तिगत भिन्नताओं के अध्ययन के लिए अपनायी जाने वाली भेंट या साक्षात्कार विधि का सामान्य परिचय दीजिए।
उत्तर:
व्यक्तिगत भिन्नताओं को ज्ञात करने के लिए भेट या साक्षात्कार विधि को भी अपनाया जाता है। व्यक्तित्व का मूल्यांकन करने की यह विधि सरकारी नौकरियों में चुनाव के लिए सर्वाधिक प्रयोग की जाती है। भेंट या साक्षात्कार के दौरान परीक्षक परीक्षार्थी से प्रश्न पूछता है और उसके उत्तरों के आधार पर उसके व्यक्तित्व का मूल्यांकन करता है। बालक के व्यक्तित्व का अध्ययन करने के लिए उसके अभिभावक, माता-पिता, भाई-बहन, मित्रों आदि से भी भेंट या साक्षात्कार किया जा सकता है। इस विधि का सबसे बड़ा दोष आत्मनिष्ठता का है। थोड़े से समय में किसी व्यक्ति विशेष के हर पक्ष से सम्बन्धित प्रश्न नहीं पूछे जा सकते और अध्ययन किये गये विभिन्न व्यक्तित्वों की पारस्परिक तुलना भी नहीं की जा सकती है। इस विधि को अधिकतम उपयोगी बनाने के लिए एक निर्धारित मान का प्रयोग किया जाना चाहिए तथा प्रश्न व उनके उत्तर पूर्व-निर्धारित हों ताकि साक्षात्कार के दौरान समय एवं शक्ति की बचत हो।

निश्चित उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
व्यक्तिगत भिन्नता से क्या आशय है ?
उत्तर:
व्यक्तिगत भिन्नता का आशय एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति से रूप-रंग, शारीरिक गठन, बुद्धि, विशिष्ट योग्यताओं, रुचियों, उपलब्धियों, स्वभाव तथा व्यक्तित्व सम्बन्धी गुणों में पायी जाने वाली भिन्नता से है।

प्रश्न 2
व्यक्तित्व भिन्नता के चार मुख्य आधारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
व्यक्तित्व भिन्नता के चार मुख्य आधार हैं-

  1. शारीरिक रचना
  2. मानसिक योग्यताएँ
  3. रुचियाँ तथा
  4. क्षमता एवं उपलब्धि

प्रश्न 3
व्यक्तिगत भिन्नताओं के मुख्य कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
व्यक्तिगत भिन्नता के मुख्य कारण हैं-

  1. वंशानुक्रम या आनुवंशिकता
  2. वातावरण
  3. लिंग-भेद तथा
  4. आयु तथा बुद्धि का प्रभाव

प्रश्न 4
व्यक्तिगत भिन्नता का शिक्षा से क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
बालक की शिक्षा की व्यवस्था उसके व्यक्तिगत गुणों के अनुसार ही होनी चाहिए।

प्रश्न 5
व्यक्तिगत भिन्नता को जानने की प्रमुख विधि कौन-सी है ?
उत्तर:
व्यक्तिगत भिन्नता को जानने की प्रमुख विधि है-परीक्षण विधि।

प्रश्न 6
व्यक्तिगत भिन्नता की सैद्धान्तिक मान्यता के अनुसार शिक्षक का मुख्य दायित्व क्या है?
उत्तर:
व्यक्तिगत भिन्नता की सैद्धान्तिक मान्यता के अनुसार शिक्षक का दायित्व है कि वह कक्षा के प्रत्येक छात्र के प्रति व्यक्तिगत रूप से ध्यान दे।

प्रश्न 7
निम्नलिखित कथन सत्य हैं या असत्य

  1. प्रकृति ने समस्त मनुष्यों को एकसमान बनाया है।
  2. यह सत्य है कि इस जगत् में कोई दो व्यक्ति पूर्ण रूप से समान नहीं हैं।
  3. व्यक्तिगत भिन्नता पर न तो आनुवंशिकता का कोई प्रभाव पड़ता है और न ही वातावरण का।
  4. व्यक्तिगत भिन्नता की अवधारणा ने शिक्षा की व्यवस्था में अनेक परिवर्तन किये हैं।

उत्तर:

  1. असत्य
  2. सत्य
  3. असत्य
  4. सत्य

बहुविकल्पीय प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों में दिये गये विकल्पों में से सही विकल्प का चुनाव कीजिए-

प्रश्न 1.
वैयक्तिक विभिन्नताओं का जनक किसे माना गया है ?
(क) टेलर को
(ख) गाल्टन को
(ग) थॉर्नडाइक को
(घ) टरमन को

प्रश्न 2.
‘मनोमिति’ किस विज्ञान की शाखा है ?
(क) मनोविज्ञान
(ख) शिक्षा मनोविज्ञान
(ग) पर्यावरण विज्ञान
(घ) बाल मनोविज्ञान

प्रश्न 3.
वैयक्तिक विभिन्नता का प्रमुख आधार है
(क) आर्थिक स्थिति
(ख) सामाजिक स्थिति
(ग) वंशानुक्रम
(घ) बौद्धिक श्रेष्ठता

प्रश्न 4.
वैयक्तिक विभिन्नता का कारण है:
(क) वंशानुक्रम
(ख) पृथ्वी
(ग) आसमान
(घ) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 5.
“बालकों की विभिन्नताएँ, प्रेरणा, बुद्धि, परिपक्वता, वातावरण सम्बन्धी उद्दीपकों की विभिन्नता का परिणाम होती हैं।” यह किसका मत है ?
(क) गैरीसन को
(ख) जर्सील्ड का
(ग) गिलफोर्ड का
(घ) थॉर्नडाइक को

प्रश्न 6.
सर्वप्रथम व्यक्तित्व के चार अर्थ किसने बताए?
(क) आगस्टाइन ने
(ख) सिसरो ने
(ग) अरस्तू ने
(घ) प्लेटो ने

प्रश्न 7.
“व्यक्तित्व उन मनोशारीरिक अवस्थाओं का गत्यात्मक संगठन है, जो किसी व्यक्ति का उसके पर्यावरण के साथ अनूठा समायोजन स्थापित करते हैं।” यह परिभाषा किसने दी है ?
(क) मन ने
(ख) ड्रेवर ने
(ग) आलपोर्ट ने
(घ) मार्टन प्रिन्स ने

प्रश्न 8.
व्यक्तित्व का सर्वप्रथम वर्गीकरण किसने किया ?
(क) हिप्पोक्रेटीज ने
(ख) कैमरर ने
(ग) थॉर्नडाइक ने
(घ) कार्ल यंग ने

प्रश्न 9.
मानव प्रकृति के आधार पर किस विद्वान् ने व्यक्तित्व के तीन प्रकार बताए हैं ?
(क) कैटेल ने
(ख) टरमन ने
(ग) कार्ल यंग ने
(घ) जुड ने

प्रश्न 10.
वैयक्तिक भिन्नता की अवधारणा ने किस शिक्षण-विधि को जन्म दिया है?
(क) कक्षा शिक्षण-विधि को
(ख) डाल्टने विधि को
(ग) सामूहिक शिक्षा-विधि को
(घ) व्यक्तिगत शिक्षा-विधि को

प्रश्न 11.
व्यक्तिगत भेद के कारण हैं
(क) वंशानुक्रम और वातावरण
(ख) वातावरण और आदत
(ग) वंशानुक्रम और रुचि
(घ) आदत और रुचि

प्रश्न 12.
जन्मजात भिन्नता के लिए मुख्य रूप से कौन-से कारक जिम्मेदार होते हैं?
(क) समाज का प्रभाव
(ख) वंशानुक्रम
(ग) जाति एवं धर्म
(घ) पर्यावरण

प्रश्न 13.
निम्नलिखित कारण व्यक्तिगत भेद के हैं सिवाय-
(क) वंशानुक्रम
(ख) वातावरण
(ग) शिक्षा-व्यवस्था
(घ) आयु एवं बुद्धि

प्रश्न 14.
व्यक्तिगत विभिन्नता का मुख्य आधार है-
(क) वर्गवाद
(ख) धर्मवाद
(ग) वंशानुक्रम
(घ) आतंकवाद

प्रश्न 15.
व्यक्तिगत भिन्नता के प्रकार हैं
(क) शारीरिक भिन्नता
(ख) मानसिक भिन्नता
(ग) व्यक्तित्व भिन्नता
(घ) ये सभी

प्रश्न 16.
स्कूली बच्चों में व्यक्तिगत भिन्नताएँ किस रूप में पायी जाती हैं ?
(क) शारीरिक
(ख) मानसिक
(ग) रुचि सम्बन्धी
(घ) ये सभी

उत्तर:

  1. (ख) गाल्टन को
  2. (क) मनोविज्ञान
  3. (ग) वंशानुक्रम
  4. (क) वंशानुक्रम
  5. (क) गैरीसन का
  6. (ख) सिसरो ने
  7. (ग) आलपोर्ट ने
  8. (क) हिप्पोक्रेटीज ने
  9. (ग) कार्ल यंग ने
  10. (ख) डाल्टन विधि को
  11. (क) वंशानुक्रम और वातावरण
  12. (ख) वंशानुक्रम
  13. (ग) शिक्षा-व्यवस्था
  14. (ग) वंशानुक्रम
  15. (घ) ये सभी
  16. (घ) ये सभी

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