Torai Ki Kheti Kaise Karen – तोरई की खेती  कैसे करें?

Torai Ki Kheti Kaise Karen: तोरई की खेती तेजी से उपज के लिए नकदी फसल के रूप में की जाती है। तोरई के पौधे लता के रूप में उगते हैं, इसलिए इसे रेंगने वाले सब्जी वर्ग में रखा जाता है। तोरई को कई जगहों पर तोरी, जिन्की और तोरई के नाम से भी जाना जाता है। पौधे पर फूल पीले होते हैं और नर और मादा फूलों का समय अलग-अलग होता है।

यदि आप ज़्यादा profits की खेती करना चाहते हैं, तो तोरई की खेती (Ridge gourd cultivation)आपके लिए बेहतर विकल्प है।

Torai Ki Kheti Kaise Karen

तोरई की खेती मुख्य रूप से बरसात के मौसम में की जाती है। लेकिन इसे फूलगोभी की फसलों में भी लगाया जा सकता है। समशीतोष्ण जलवायु इसके पौधे को उगाने के लिए अनुकूल है। इसकी खेती के लिए भूमि का ph मान सामान्य होना चाहिए। तोरई में ढेर सारे पोषक तत्व होते हैं। यह calcium, copper, iron, potassium, phosphorus, magnesium और manganese जैसे खनिजों के रूप में पाया जाता है। इसमें Vitamins A, B, C, Iodine और fluorine भी होता है।

भूमि  कैसी होनी चाहिए?

तोरई की खेती के लिए organic पदार्थों से भरपूर उपजाऊ भूमि की आवश्यकता होती है। लेकिन अधिक उपज प्राप्त करने के लिए तोरई की भूमि में जल निकासी की सुविधा के साथ खेती की जानी चाहिए। उदासीन (सामान्य) ph.d. बहुमूल्य भूमि पर आसानी से खेती की जा सकती है।

सिंचाई कैसे करें ?

तोरई पौधों के लिए आवश्यकतानुसार पानी दिया जाता है। यदि इसके बीज जून में बोये जाते हैं तो बीज को बोने के तुरंत बाद पानी देना चाहिए, उसके बाद तीन से चार दिनों के अंतराल पर हल्की सिंचाई करनी चाहिए ताकि खेत में नमी बनी रहे। और बीज ठीक से अंकुरित हो जाते हैं। इसके अलावा बरसात के मौसम में पौधे रोपने के लिए जरूरत पड़ने पर ही पौधों को पानी दें।

जलवायु और तापमान कितना होना चाहिए ?

इसकी खेती के लिए समशीतोष्ण जलवायु उपयुक्त मानी जाती है। इसके पौधों को अच्छी तरह विकसित होने के लिए शुष्क और नम जलवायु की आवश्यकता होती है इसके पौधे अत्यधिक ठंड के मौसम को सहन नहीं कर सकते हैं। इसके पौधे गर्मियों में अच्छे से बढ़ते हैं। तोरई के पौधे सामान्य तापमान पर अच्छी तरह अंकुरित होते हैं। इसके पौधे अधिकतम 35 डिग्री तापमान सहन कर सकते हैं।

उन्नत किस्में (improved varieties)

घिया तोरई(Ghiya Luffa)

इस पौधे के फल गहरे हरे रंग के होते हैं और छोटे किआ के समान होते हैं। यह किस्म भारत में व्यापक रूप से उगाई जाती है, जिसका छिलका बहुत पतला होता है। इसके ताजे फल vitamins से भरपूर होते हैं। जिन्हे सब्जी बनाने के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है |

पूसा नसदार(Pusa Nasdar)

इस प्रकार का तोरई बीज बुवाई के 80 दिनों के बाद उपज देना शुरू कर देता है, जिसमें खुले फल पर सीधी धारियाँ दिखाई देती हैं। फल हल्के हरे और पीले रंग के होते हैं। इस किस्म को जेड फसल के रूप में उगाया जाता है।

सरपुतिया(Sarputia)

इस प्रकार का तोरई तैयार करने में बीज बोने से दो महीने का समय लगता है। इसके पौधों पर फल का आकार छोटा होता है और वे गुच्छों में दिखाई देते हैं। इसके फल में एक ऊंचा टुकड़ा दिखाई देता है, और त्वचा की बाहरी परत मोटी और मजबूत होती है। यह किस्म ज्यादातर मैदानी इलाकों में उगाई जाती है।

कोयम्बूर 2(Coimbatore 2)

यह किस्म बुवाई के 70 दिन बाद उत्पादन शुरू कर देती है। इसमें पौधों से निकलने वाले फलों का आकार पतला और बीज कम होता है। यह किस्म 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है।

उर्वरक की मात्रा कितनी होनी चाहिए?

अन्य बेल की फसलों की तरह, तोरई पौधों को अधिक उर्वरक की आवश्यकता होती है। इसके लिए शुरुआत में खेत की तैयारी करते समय पुराने गोबर को लगभग 12 से 15 वाहन प्रति एकड़ की दर से

खेत में डालना चाहिए। किसान गाय के गोबर की खाद की जगह प्राकृतिक खाद का प्रयोग compost खाद के रूप में कर सकते हैं। इसके अलावा NPK का उपयोग रासायनिक उर्वरक के रूप में किया जाता है। अंतिम जुताई के समय 100 से 125 kg खेत में छिड़काव करें। उसके बाद जब पौधे बड़े हो जाएं तो पौधों की तीसरी सिंचाई के साथ लगभग 15 kg ureaदें। इससे पौधों का विकास अच्छा होता है।

खरपतवार नियंत्रण कैसे करें?

तोरई पौधों में खरपतवार नियंत्रण के लिए खरपतवार नियंत्रण का उपयोग किया जाता है। इसके पौधों का शुरुआती गुच्छा बुवाई के 15 दिन बाद होता है। प्रारंभिक फावड़ा करने के बाद 15 से 20 दिनों के अंतराल पर बाद में फावड़ा करना चाहिए। इसके अलावा  यदि  आप  रासायनिक  तरीके से खरपतवार पर नियंत्रण करना चाहते है, तो आपको तोरई के खेत में बीज रोपाई से पहले bassline की उचित मात्रा का छिड़काव करना होता है |

रोग एवं कीट प्रबंधन

लालड़ी(Laldi)

इस प्रकार का रोग तोरई पौधों पर अक्सर शुरुआती बीज अंकुरण के समय दिखाई देता है। यह रोग तोरई के पौधों पर कीटों का आक्रमण है। इस रोग की सुंडी पौधों की जड़ों को खा जाती है और उन्हें पूरी तरह नष्ट कर देती है। यह कीट देखने में चमकीले लाल रंग का होता है। तोरई पौधों को इस रोग से बचाने के लिए बीज के अंकुरण के समय नीम के तेल का छिड़काव किया जाता है।

फल मक्खी(fruit fly)

इस प्रकार का रोग फलों के बनने पर पौधों पर आक्रमण करता है। यह फल मक्खी रोग अंडे देकर पौधों की पत्तियों और फलों को नुकसान पहुंचाता है। उसके बाद फल में पैदा हुआ सुंडी फल को नुकसान पहुंचाएगा। रोग से बचाव के लिए

Neem Tincture या cow urine को micro SIM में मिलाकर तोरई के पौधों पर छिड़काव करना चाहिए।

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मोजैक(mosaic)

इस प्रकार का रोग तोरई के पौधों पर Virus के रूप में आक्रमण करता है। यह रोग पौधों की पत्तियों पर हमला करता है और उनकी वृद्धि को पूरी तरह से रोक देता है। कुछ समय बाद पत्तियां मुरझा जाती हैं, झड़ जाती हैं और उपज प्रभावित होती है। तोरई पौधों पर नीम के तेल का छिड़काव रोग से बचाव के लिए किया जाता है।

जड़ सड़न(root rot)

यह रोग ज्यादातर खेत में रुके हुए पानी में पाया जाता है। संक्रमित पौधे का तना मिट्टी की सतह से काला हो जाता है और सड़ जाता है। उसके बाद, पत्ते पूरी तरह से नष्ट हो जाते हैं। रोग के प्रति अधिक संवेदनशील पौधे कुछ समय बाद मुरझा जाते हैं और मर जाते हैं। इस रोग की रोकथाम के लिए bavistein या mancozeb की उचित मात्रा का छिड़काव पौधों की जड़ों पर किया जाता है।

पैदावार और लाभ( yield and profit)

विभिन्न प्रकार के तोरई औसतन 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उपलब्ध हैं। वहीं, इसका बाजार भाव करीब 10 Rs प्रति kg है। किसान के भाई का तोरई अगर 5 Rs प्रति kg के हिसाब से भी जाता है, तो वह एक बार में एक हेक्टेयर से Rs 1.25 lakh से ज्यादा आसानी से कमा सकता है।

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निष्कर्ष

तोरई की खेती तेजी से उपज के लिए नकदी फसल के रूप में की जाती है। तोरई के पौधे लता के रूप में उगते हैं, इसलिए इसे रेंगने वाले सब्जी वर्ग में रखा जाता है। यह calcium, copper, iron, potassium, phosphorus, magnesium और manganese जैसे खनिजों के रूप में पाया जाता है। इसमें Vitamins A, B, C, Iodine और fluorine भी होता है। तोरई की खेती के लिए organic पदार्थों से भरपूर उपजाऊ भूमि की आवश्यकता होती है।

तोरई पौधों के लिए आवश्यकतानुसार पानी दिया जाता है। इसकी खेती के लिए समशीतोष्ण जलवायु उपयुक्त मानी जाती है।  इसके पौधों को अच्छी तरह विकसित होने के लिए शुष्क और आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है। तोरई पौधों में खरपतवार नियंत्रण के लिए खरपतवार नियंत्रण का उपयोग किया जाता है। विभिन्न प्रकार के तोरई औसतन 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उपलब्ध हैं। वहीं, इसका बाजार भाव करीब 10 Rs प्रति kgहै। किसान के भाई का तोरई अगर 5 Rs प्रति kg के हिसाब से भी जाता है, तो वह एक बार में एक हेक्टेयर से Rs 1.25 lakh से ज्यादा आसानी से कमा सकता है।

Torai Ki Kheti Video

Credit: Indian Farmer

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तो दोस्तों हमने तोरई की खेती कैसे करें (Torai Ki Kheti ) की सम्पूर्ण जानकारी आपको इस लेख से देने की कोशिश की है उम्मीद है आपको यह लेख पसंद आया होगा अगर आपको हमारी पोस्ट अच्छी लगी हो तो प्लीज कमेंट सेक्शन में हमें बताएँ और अपने दोस्तों के साथ शेयर भी करें। Thanks for reading

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