पृथ्वी भी एक चुम्बक की तरह व्यवहार करती है , ऐसा लगता है जैसे पृथ्वी के गर्भ में कोई चुम्बक रखी गयी और इस चुम्बक का दक्षिणी ध्रुव भौगोलिक उत्तर दिशा में हो तथा उत्तरी ध्रुव भौगोलिक दक्षिण दिशा में हो। पृथ्वी के इस चुंबकत्व को ही भू (पृथ्वी) चुम्बकत्व कहते है।
पृथ्वी के चुम्बकीय व्यवहार की पुष्टि निम्न प्रयोगों से हुई है:
1. स्वतन्त्रता पूर्वक लटकी हुई चुम्बकीय सुई सदैव उत्तर-दक्षिण दिशा में ठहरती है : जब चुम्बकीय सुई को किसी धागे से इस प्रकार स्वतंत्रता पूर्वक लटकाया जाए की यह घूम सके तो चुम्बक सुई का उत्तरी ध्रुव भौगोलिक उत्तर दिशा में तथा दक्षिणी ध्रुव भौगोलिक दक्षिण दिशा में ठहरता है। इससे यह सिद्ध होता है की पृथ्वी में दक्षिण से उत्तर की तरफ कोई चुम्बकीय क्षेत्र उपस्थित है।
2. पृथ्वी में गाडी गयी लोहे की छड का चुम्बक बन जाना : जब किसी लोहे की छड को पृथ्वी में उत्तर दक्षिण दिशा में गाड़ा जाता है तो यह लोहे की छड कुछ समय बाद चुम्बक की भांति व्यवहार करती है , यह चुम्बकीय गुण कहा से आया ? , ऐसा तभी संभव है जब पृथ्वी एक शक्तिशाली चुम्बक हो और लोहे की छड जब इसके संपर्क में आती है तो इसमें कुछ चुम्बकीय गुण आ जाते है।
3. दण्ड चुम्बक के लिए बल रेखाएं खीचने पर उदासीन बिन्दु का प्राप्त होना : जब किसी दण्ड चुम्बक को इस प्रकार रखा जाए की इसका उत्तरी ध्रुव भोगोलिक उत्तर की तरफ हो , इस स्थिति में चुम्बक की चुम्बकीय बल रेखाएं खीचने पर निरक्ष बिन्दु पर दोनों तरफ उदासीन बिन्दु प्राप्त होता है।
इसी प्रकार यदि चुम्बक को इस प्रकार रखा जाए की चुंबक का उत्तरी ध्रुव भौगोलिक दक्षिण की तरफ हो तो इस स्थिति में चुम्बकीय रेखायें खींचने पर अक्षीय बिन्दु पर दोनों तरफ उदासीन बिंदु प्राप्त होता है।
ऐसा तभी संभव है जब पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र , चुम्बक के चुम्बकीय क्षेत्र को उदासीन कर दे और उदासीन बिन्दु प्राप्त हो।
4. स्वतंत्रता पूर्वक लटकायी गयी चुम्बकीय सुई भिन्न भिन्न स्थानों पर अलग व्यवहार करती है , ऐसा इसलिए हो सकता है की पृथ्वी का भू चुम्बकत्व अलग अलग स्थानों पर अलग अलग होताहै।
Remark:
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