UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 14 योजना – महत्वम् (गद्य – भारती)

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परिचय

भारत में शताधिक वर्षों तक चले अंग्रेजी शासन ने देश के कल्याण और उन्नति की बात नहीं सोची, वरन् मात्र अपनी स्वार्थ-पूर्ति पर ध्यान दिया। इसी कारण भारत के स्वतन्त्र होने पर भारतीय नेतृत्व के सामने अनेक समस्याएँ खड़ी हो गयीं। स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पं० जवाहरलाल नेहरू रूस की समाजवादी व्यवस्था से बहुत प्रभावित थे। कम्युनिस्टों का शासन प्रारम्भ होने के बाद रूस में पंचवर्षीय योजना-महत्त्वम् योजनाएँ बनायी गयी थीं और यह निश्चित किया गया था कि पाँच वर्षों में उन्हें कौन-कौन से काम करने हैं। रूस के ढंग पर ही नेहरू जी ने भी भारत में पंचवर्षीय योजनाएँ प्रारम्भ कीं और उसके लिए एक समिति बना दी। समिति यह निश्चय करती थी कि किस पंचवर्षीय योजना में कौन-से कार्य किये जाएँगे और किन पर कितना व्यय किया जाएगा। इन्हीं पंचवर्षीय योजनाओं ने भारत का कायाकल्प कर दिया। यहाँ हवाई जहाजों तक का निर्माण होने लगा और कृषि के क्षेत्र में भी हरित क्रान्ति आयी। प्रस्तुत पाठ पंचवर्षीय योजना के महत्त्व और उनसे होने वाले लाभों का परिचय देता है।

पाठ-सारांश (2006,07,08, 9, 10, 11, 12, 14]

उन्नति का अवसर संसार के इतिहास में कितने ही राष्ट्रों ने उन्नति की है और कितने ही अवनति के गर्त में गिर गये हैं। हमारा देश भारत भी दीर्घकाल तक परतन्त्रता की बेड़ियों में जकड़ा रहा। लोकमान्य तिलक, महात्मा गाँधी, जवाहरलाल नेहरू, वल्लभभाई पटेल, सुभाषचन्द्र बोस और जनता के सहयोग तथा बलिदान के परिणामस्वरूप यह 15 अगस्त, 1947 ई० को स्वतन्त्र हुआ। इसके स्वतन्त्र होने तथा संविधान बन जाने पर यहाँ के नेतृत्व ने इसकी उन्नति के लिए योजनाएँ बनायीं। इन योजनाओं के लागू होने पर भारत को सामाजिक और आर्थिक उन्नति का अवसर प्राप्त हुआ।

पंचवर्षीय योजनाओं द्वारा प्रगति हमारे नेताओं ने देश की प्रगति के लिए एक योजना-समिति बनायी, जिसने पाँच वर्षों में हो सकने योग्य कार्यों का विवरण तैयार किया। प्रथम पंचवर्षीय योजना में कृषि को सर्वाधिक महत्त्व दिया गया तथा कृषि के आश्रित साधनों के विकास के लिए रूपरेखा बनायी गयी। दूसरी पंचवर्षीय योजना में बड़े-बड़े उद्योगों को महत्त्व दिया गया। इन योजनाओं के अन्तर्गत अनेक छोटी-बड़ी योजनाएँ थीं, जिनमें भाखड़ा, हीराकुड, दामोदर, तुंगभद्रा, मयूराक्षी और रिहन्द बाँधों की योजनाएँ प्रमुख थीं। इन योजनाओं से कृषि की सिंचाई, जल-प्रवाह के नियन्त्रण से बाढ़ की रोकथाम तथा विद्युत-शक्ति का उत्पादन आदि लाभ थे। विद्युत् से बड़ी-बड़ी मशीनें चलती हैं और प्रकाश प्राप्त होता है। चौथी, पाँचवीं, छठी योजनाएँ भी यथासमय चलती रहीं और आज भी प्रचलित हैं।

योजनाओं से लाभ इन योजनाओं से हमारे देश की राष्ट्रीय आय में वृद्धि, महँगाई की रोकथाम, दैनिक उपयोग की वस्तुओं की प्राप्ति में सुगमता, छोटे-बड़े उद्योगों की ओर ध्यानाकर्षण, खाद्यान्नों में आत्मनिर्भरता, परिवार नियोज़न, नहरों का निर्माण और नलकूप लगाना, गाँवों में बिजली का प्रबन्ध, वृक्षारोपण आदि अनेक लाभ हुए। चिकित्सा के क्षेत्र में यक्ष्मा, चेचक, मलेरिया आदि संक्रामक और भयानक रोगों से पूर्णतया छुटकारा मिला। एक्स-रे से भीतरी रोगों का पता लगाना सम्भव हुआ। नहरों के निर्माण से भूमि उर्वरा, धान्यसम्पन्न हुई और मानवों व पशु-पक्षियों को पेयजल प्राप्त हुआ। रेलमार्गों के विस्तार, उनकी गति में वृद्धि तथा डीजल इंजनों के प्रयोग से यात्रा तथा माल के लाने और भेजने में समय की ११ बचत हुई।

जनसंख्या की समस्या इन योजनाओं के क्रियान्वयन से प्रति व्यक्ति जितना लाभ अपेक्षित समझा गया था, जनसंख्या की वृद्धि के कारण उतना लाभ नहीं मिला। चिकित्सा-साधनों में वृद्धि होने पर भी मृत्यु का प्रतिशत जितना कम हुआ, जन्म का प्रतिशत उससे कहीं अधिक बढ़ गया। जनसंख्या में वृद्धि को शिक्षा के प्रसार से ही रोका जा सकता है। सरकार जनसंख्या पर नियन्त्रण करने हेतु शिक्षा के प्रसार के लिए सतत प्रयासरत है।

शिक्षा से लाभ शिक्षा से केवल व्यक्ति का ही विकास नहीं होता, वरन् सामाजिक चेतना भी जाग्रत होती है। बालकों और वृद्धों के आचार-विचार और व्यवहार में परिवर्तन आता है। निरक्षर और गरीब लोग बच्चे उत्पन्न करना ही अपना लक्ष्य समझते हैं, उनके भरण-पोषण पर ध्यान नहीं देते। सामान्य जनता में शिक्षा के प्रसार से ही हमारी योजनाएँ सफल हो सकती हैं।

गद्यांशों का ससन्दर्भ अनुवाद

(1)
कस्यात्यन्तं सुखमुपनतं दुःखमेकान्ततो वा’ इतीयं सुशोभना सूक्तिः, यावच्चे प्रतिजनं चरितार्था भवति, तथैव तावदेव राष्ट्रजीवनेष्वपि सङ्घटते। संसारस्येतिहासे पुराकालादारभ्य अद्यावधि कियन्ति राष्ट्राणि, प्रोन्नतिशृङ्गमारूढानि, कालान्तरेऽवनतिगर्ते पतितानि। कियन्ति’ चान्यानि अवनति गर्तान्निष्क्रम्य, उन्नतिशिखरमारूढानि, इति गदितुं निरवद्यमशक्यम्। प्रायेण सर्वेषां राष्ट्राणां विषये तथ्यमिदम्। भारतवर्षमपि, अस्य तथ्यस्यापवादो भवितुं नाशकत्। बहोः कालात् अस्माकं देशः पारतन्त्रिकशृङ्खलया निगडितः आसीत्। तिलक-गान्धी-नेहरू-पटेल-सुभाषमहोदयानां जनतायाश्च सहयोगेन, बलिदानेन सप्तचत्वारिंशदधिकैकोनविंशतिशततमे (1947) खीष्टाब्दे स्वतन्त्रो जातः।

शब्दार्थ कस्यात्यन्तं = किसका अत्यधिक उपनतम् = प्राप्त। एकान्ततः = पूर्णरूप से। तावदेव = उतना ही। सङ्कटते = घटित होती है। पुराकालादारभ्य = प्राचीनकाल से प्रारम्भ करके। अद्यावधि =आज तक कियन्ति = कितने ही। प्रोन्नतिशृङ्गमारूढानि = उन्नति के शिखर पर पहुँचे। गर्ते = गड्डे में। निष्क्रम्य = निकलकर। गदितुम् = कहना। निरवद्यम् = निश्चय ही। अशक्यम् = नहीं कहा जा सकता, असम्भव। पारतन्त्रिकशृङ्खलया = परतन्त्रतारूपी श्रृंखला से। निगडितः = जकड़ा हुआ, बँधा हुआ। सप्तचत्वारिंशदधिकैकोनविंशतिशततमे = उन्नीस सौ सैंतालीस में।

सन्दर्भ प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत’ के गद्य-खण्ड ‘गद्य-भारती’ में संकलित ‘योजना-महत्त्वम्’ शीर्षक पाठ से लिया गया है।

[ संकेत, इस पाठ के शेष सभी गद्यांशों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा। ]

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में बहुत समय तक परतन्त्र रहने के बाद भारत के स्वतन्त्र होने का वर्णन किया गया है।

अनुवाद “किसको अत्यन्त सुख प्राप्त है अथवा किसको पूर्णरूप से दुःख प्राप्त है। यह सुन्दर उक्ति जितनी प्रत्येक मनुष्य के विषय में चरितार्थ होती है, उसी प्रकार उतनी ही राष्ट्र के जीवन में भी घटित होती है। संसार के इतिहास में प्राचीन काल से लेकर आज तक कितने राष्ट्र उन्नति के शिखर पर पहुँच गये, कुछ समय बाद अवनति के गड्ढे में गिर गये और कितने ही अवनति के गड्डे से निकलकर उन्नति के शिखर पर चढ़ (पहुँच) गये, यह कहना निश्चित ही असम्भव है। प्रायः सभी राष्ट्रों के विषय में यह वास्तविक बात है। भारतवर्ष भी इस वास्तविकता का अपवाद नहीं हो सका। बहुत समय से हमारा देश परतन्त्रता की बेड़ी में जकड़ा हुआ था। तिलक, गाँधी, नेहरू, पटेल, सुभाष आदि नेताओं और जनता के सहयोग और बलिदान से सन् 1947 ईस्वी में स्वतन्त्र हो गया।

(2)
वैदेशिकाः समस्तानि कार्याणि स्वहितदृष्ट्यैव कृतवन्तः, नास्य देशस्य उन्नतेः समृद्धेर्वा दृष्टया। जाते स्वतन्त्रे देशे, सम्पन्ने सार्वभौमिके सत्तासम्पन्ने राष्ट्र, विरचिते च विधाने, आर्थिक-सामाजिकप्रोन्नत्योः मिलिते सुवर्णावसरे, अस्माकं नेतृभिः नेहरूमहाभागैः एतदर्थं समितिरेका निर्मिता या योजनासमितिरभ्यधीयत। इयमेव समितिः सर्वं विचार्य प्रथमं पञ्चभिः वर्षेः सम्पादयितुं योग्यानां कार्याणां यद् विवरणं प्रकाशितवती सैव प्रथमा पाञ्चवर्षिकी योजनेति नाम्ना प्रसिद्धा। स्वदेशे जीविकासाधनेषु कृषेरेव सर्वमुख्यत्वाद् अस्यां योजनायां तस्या एव सर्वाधिक महत्त्वं स्वीकृतम्। कृष्याश्रितानां ग्रामोद्योगानामपि विकासोऽपेक्षितः, एतदपेक्षितानि साधनान्यपि यथासम्भवं साधितानि। द्वितीयपाञ्चवर्षियां योजनायां महोद्योगेभ्यः प्राधान्यमदीयत। अतः औद्योगिक विकासः प्रसारश्च द्वितीययोजनायाः प्रधानलक्ष्यमासीत्।।

शब्दार्थ वैदेशिकाः = विदेशियों ने। स्वहितदृष्ट्यैव = अपने हित की दृष्टि से ही। सार्वभौमिके सत्तासम्पन्ने = सार्वभौमिक सत्तासम्पन्न होने पर आर्थिक-सामाजिक प्रोन्नत्योः = आर्थिक और सामाजिक उन्नतियों के। एतदर्थं = इसके लिए। समितिरेको = एक समिति। अभ्यधीयत = कही गयी, कहलायी। सम्पादयितुम् = पूरा करने के लिए। कृष्याश्रितानाम् = खेती पर आधारित। अदीयत = दिया गया।

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में स्वतन्त्र भारत की पंचवर्षीय योजनाओं के लक्ष्य के विषय में बताया गया है।

अनुवाद विदेशी लोग समस्त कार्य अपने हित की दृष्टि से ही करते थे, इस देश की उन्नति या समृद्धि की दृष्टि से नहीं। देश के स्वतन्त्र होने पर, राष्ट्र के सार्वभौमिक सत्ता से सम्पन्न होने पर और संविधान के बनने पर, आर्थिक और सामाजिक उन्नति का स्वर्णावसर मिलने पर, हमारे नेहरू जी आदि नेताओं ने इसके लिए समिति बनायी, जो ‘योजना-समिति’ कहलायी। इसी समिति ने सब कुछ विचारकर प्रथम पाँच वर्षों में हो सकने योग्य कार्यों को जो विवरण प्रकाशित किया, वही ‘प्रथम पंचवर्षीय योजना’ इस नाम से प्रसिद्ध हुई। अपने देश में जीविका के साधनों में खेती के ही सबसे प्रमुख होने के कारण इस योजना में उसी का सबसे अधिक महत्त्व स्वीकार किया गया। खेती पर आधारित ग्रामोद्योग का विकास भी आवश्यक है; अतः इसके लिए आवश्यक साधनों को भी यथासम्भव पूरा (प्राप्त) किया गया। द्वितीय पंचवर्षीय योजना में बड़े उद्योगों को प्रधानता दी गयी; अत: उद्योगों का विकास और प्रसार द्वितीय योजना का प्रधान लक्ष्य था।

(3)
प्रथमपाञ्चवर्षिकयोजनान्तर्गतपञ्चत्रिंशदधिकं शतं (135) योजनाः आसन्। आसु एकादश बहुप्रयोजनाः तासु मुख्याः भाखरा-हीराकुड-दामोदर-तुङ्गभद्रा-मयूराक्षी-रिहन्दबन्धयोजनाः। एभ्यो बहुप्रयोजनेभ्यो बन्धेभ्योऽनेके लाभाः। कृषिसेचनं तावत् प्रथमो लाभः। द्वितीयश्च पुनः जलप्रवाहनियन्त्रणेन प्लावनभयान्निवृत्तिः। तृतीयो लाभः विद्युच्छक्त्युत्पादनं येनोद्योगशालासु सुमहन्ति यन्त्राणि परिचालितानि। विद्युत्प्रकाशस्तु अलभतैव। एवं चतुर्थ-पञ्चम-षष्ठ-इत्यादयः योजनाः यथासमयमद्यावधि प्रचलिताः सन्ति।

शब्दार्थ पञ्चत्रिंशदधिकं शतं = एक सौ पैंतीस। बहुप्रयोजनाः = बहुउद्देशीय। कृषिसेचनम् = खेती की सिंचाई। प्लावनभयात् = बाढ़ के डर से निवृत्तिः = छुटकारा। विद्युच्छक्त्युत्पादनम् (विद्युत् + शक्ति + उत्पादनम्) = बिजली की शक्ति का उत्पन्न होना। सुमहान्ति = बड़ी-बड़ी। यन्त्राणि = मशीनें। अलभतैव = प्राप्त किया ही जाता है।

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में प्रथम पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत हुए लाभों का वर्णन किया गया है।

अनुवाद प्रथम पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत 135 योजनाएँ थीं। इनमें ग्यारह बहुउद्देशीय थीं। उनमें मुख्य भाखड़ा, हीराकुड, दामोदर, तुंगभद्रा, मयूराक्षी, रिहन्द बाँध योजनाएँ थीं। इन बहुउद्देशीय बाँधों से अनेक लाभ हैं। खेती की सिंचाई तो पहला लाभ है और दूसरा लाभ जल के प्रवाह को रोकने से बाढ़ के भय से मुक्ति है। तीसरा लाभ विद्युत शक्ति का उत्पादन है, जिससे उद्योगशालाओं में बड़े-बड़े यन्त्र चलाये जाते हैं। बिजली का प्रकाश तो प्राप्त हुआ ही है। इस प्रकार चतुर्थ, पञ्चम, षष्ठ इत्यादि योजनाएँ समय-समय पर
आज तक प्रचलित हैं।

(4)
आसु योजनासु अनेकाः अन्तर्गर्भिताः योजनाः सन्ति। आसां योजनानां फलानि-राष्ट्रियायेषु वृद्धिः महर्घतायाः नियन्त्रणम्, उपयोगिनां नैत्यिकानां वस्तूनां न्यूनतायाः दूरीकरणं, लघुषु विशालेषु, चोद्योगेषु अवधानं खाद्यान्नेषु स्वावलम्बनानयनं, परिवारनियोजनं, सर्वत्र कुल्यानां प्रवाहणं, नलकूपानां स्थापनं, प्रतिग्रामं विद्युत्प्रकाशः, वृक्षारोपणम्। आभिः योजनाभिः फलन्त्विदमवश्यं जातं यत् अस्माकं देशः खाद्यान्नेषु स्वावलम्बी सुसम्पन्नः।।

आसु योजनासु ………………………………………. विद्युत्प्रकाशः वृक्षारोपणम् । [2011]

शब्दार्थ अन्तर्गर्भिताः = भीतर छिपी हुई। राष्ट्रियायेषु = राष्ट्र की आयों में। महर्घतायाः = महँगाई का। नैत्यिकानाम् = प्रतिदिन की। अवधानम् = ध्यान देना। स्वावलम्बनानयनम् = स्वावलम्बन ले आना। कुल्यानाम् = नहरों का। नलकूपानाम् = ट्यूबवेलों का। आभिः योजनाभिः = इन योजनाओं के द्वारा। फलन्त्विदमवश्यं (फलं + तु + इदम् + अवश्यं) = फल तो यह अवश्य है।

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में पंचवर्षीय योजनाओं के द्वारा देश का जो विकास हुआ है, उसके बारे में प्रकाश डाला गया है।

अनुवाद इन योजनाओं में अनेक योजनाएँ अन्तर्निहित हैं। इन योजनाओं के परिणाम हैं-राष्ट्रीय आय में वृद्धि, महँगाई की रोकथाम, उपयोग में आने वाली दिन-प्रतिदिन की वस्तुओं की कमी को दूर करना, छोटे और बड़े उद्योगों पर ध्यान देना, खाद्यान्नों में आत्मनिर्भरता लाना, परिवार नियोजन, सभी जगह नहरें प्रवाहित करना, ट्यूबवेल (नलकूप) लगाना, प्रत्येक गाँव में बिजली का प्रकाश, वृक्ष लगाना। इन योजनाओं से यह फल तो अवश्य हुआ कि हमारा देश खाद्यान्नों में आत्मनिर्भर और भली-भाँति सम्पन्न हो गया है।

(5)
इत्थं चिकित्साक्षेत्रेष्वपि महती प्रगतिः सम्पन्ना। यक्ष्माशीतलामलेरियादिरोगाणां प्रायः देशात् निष्क्रमणमेव जातम्। क्ष-किरणात् (एक्स-रे) आन्तरिकाणां रोगाणां स्थानां चित्रं समक्षमायातं, येन चिकित्सासु महत्सौकर्यं सम्पन्नम्। सर्वत्र बन्धानां निर्माणेन, कुल्यानां प्रवाहणेन भूमिः उर्वरा जाता, ऊषरभूमिरपि सस्यसम्पन्ना भवति। जलसाधनेन प्रतिग्रामं, प्रत्युद्यानं प्रतिक्षेत्रं जलमेव दृश्यते। सर्वत्र जलपक्षिणः अन्ये च विहङ्गाः कलरवं कुर्वन्तः उड्डीयन्ते। वन्याः प्राणिनः ये ग्रीष्मकालेषु जिह्वां प्रसार्य तोयार्थमितस्ततः धावन्ति स्म तेऽद्योदकं पायं पायं नदन्तः कूर्दमानाः परिभ्रमन्ति।।

शब्दार्थ इत्थम् = इस प्रकार। यक्ष्माशीतलामलेरियादिरोगाणाम् = टी० बी०, चेचक, मलेरिया आदि रोगों का। निष्क्रमणमेव = निकलना ही। आन्तरिकाणाम् = भीतरी। समक्षमायातम् = सामने आया। सौकर्यम् = सुविधा, सरलता। बन्धानां = बाँधों के। उर्वरा = उपजाऊ। ऊषर = बंजर। सस्य = फसला उड्डीयन्ते = उड़ते हैं। प्रसार्य = फैलाकर। तोयार्थम् = पानी के लिए। इतस्ततः = इधर-उधर उदकं = जल के पायं-पायं = पी-पीकर। नदन्तः = शब्द करते हुए। कूर्दमानाः = कूदते हुए, दौड़ते हुए। परिभ्रमन्ति = चारों ओर घूमते हैं।

प्रसग प्रस्तुत गद्यांश में पंचवर्षीय योजनाओं से हुए कुल लाभों का वर्णन किया गया है।

अनुवाद इस प्रकार चिकित्सा के क्षेत्र में भी बड़ी प्रगति हुई है। तपेदिक, चेचक, मलेरिया आदि रोगों का देश से प्रायः बहिष्कार हो गया है। एक्स-रे (शरीर के) से भीतरी रोगों के स्थानों का चित्र सामने आ जाता है, जिससे चिकित्सा में अत्यधिक सुविधा हो गयी है। सब जगह बाँधों के बनाने से, नहरों के प्रवाहित करने से भूमि उपजाऊ हो गयी है। बंजर भूमि भी धान्य-सम्पन्न हो गयी है। जल के साधनों से प्रत्येक गाँव में, प्रत्येक उद्यान में, प्रत्येक खेत में जल ही दिखाई देता है। सब जगह जल-पक्षी और दूसरे पक्षी कलरव करते हुए उड़ते हैं। जंगली जीव, जो गर्मी के दिनों में जीभ फैलाकर जल के लिए इधर-उधर दौड़ते-फिरते थे, वे
आज जल पी-पीकर शोर करते कूदते हुए चारों ओर घूमते हैं।

(6)
प्रतिग्रामं विद्युत प्रकाशेन, तारकितं नभः निशि भूतलोपरि आयातमिव प्रतीयते। अद्य रेलगन्त्रीणां गतिषु कियती वृद्धिः जाता। रेलमार्गाणां विस्तारः, रेलगन्त्रीणां सङ्ख्यासु वृद्धिः, धूम्रजनानां स्थानेषु डीजलतैलेजनानां विस्तारः, विद्युतच्चालितानां रेलगन्त्रीणां सञ्चारेण समयस्य दुरुपयोगात् संरक्षणं दृष्ट्वा मनः अतीव प्रसन्नं भवति। अस्तु आसु योजनासु विद्यमानासु सत्स्वपि प्रतिजनं यावान् लाभः अपेक्षितः आसीत् तावांल्लाभो न जातः। कारणं जनसङ्ख्यायाः तीव्रगत्या वृद्धिरेव। चिकित्सासुविधासु वृद्धि गतीसु यत्र मरणप्रतिशते हासः तावान् जन्मप्रतिशते हासो न जातः। जननप्रतिरोधज्ञानं विना जनसङ्ख्यासु न्यूनता नायास्यति। एतत् तदैव सम्भाव्यते यदा शिक्षायाः प्रसारो भवेत्, साक्षरता वर्धेत एतदर्थं सर्वकारः जनसङ्ख्याशिक्षायाः प्रसाराय शिक्षणं चालयति। इयं शिक्षा परिवारनियोजनात् भिन्नैव।

प्रतिग्रामं विद्युतां ………………………………………. तीव्रगत्या वृद्धिरेव। [2011, 14]

शब्दार्थ तारकितम् =तारों से भरा। भूतलोपरि =धरती पर कियती = कितनी। धूमेजनानां = धुएँ के इंजनों का। रेलगन्त्रीणां = रेलगाड़ियों की। सत्स्वपि = होने पर भी। तावांल्लाभः = उतना लाभ। ह्रासः = कमी। जननप्रतिरोधज्ञानम् = जन्म की रोकथाम का ज्ञान नायास्यति = नहीं आएगी। सर्वकारः = सरकार

प्रसंग. प्रस्तुत गद्यांश में बताया गया है कि योजनाओं से अनेक लाभों के होते हुए भी जनसंख्या की वृद्धि के कारण उतना लाभ नहीं हो पाया है।

अनुवाद प्रत्येक ग्राम में बिजलियों के प्रकाश से तारों से भरा आकाश रात्रि में पृथ्वी के ऊपर आया-सा प्रतीत होता है। आज रेलगाड़ियों की गति में कितनी वृद्धि हो गयी है। रेलमार्गों के विस्तार, रेलगाड़ियों की । संख्या में वृद्धि, धुएँ के इंजनों के स्थान पर डीजल-तेल से चलने वाले इंजनों के विस्तार, बिजली से चलने वाली रेलगाड़ियों के चलने से समय के दुरुपयोग से बचत को देखकर मन अत्यन्त प्रसन्न होता है। फिर भी, इन योजनाओं के होने पर भी प्रत्येक व्यक्ति को जितने लाभ की अपेक्षा थी, उतना लाभ नहीं हुआ। (इसमें)। जनसंख्या की तीव्रगति से वृद्धि ही कारण है। चिकित्सा की सुविधाओं के बढ़ जाने पर जहाँ मृत्यु के प्रतिशत में कमी हुई है, उतनी जन्म के प्रतिशत में कमी नहीं हुई। जन्म की रोकथाम के ज्ञान के बिना जनसंख्या में कमी नहीं आएगी। यह तभी हो सकता है, जब शिक्षा का प्रसार हो, साक्षरता बढ़े। इसके लिए सरकार जनसंख्या की शिक्षा के प्रसार के लिए शिक्षण चला रही है। यह शिक्षा परिवार-नियोजन से भिन्न ही है।

(7)
शिक्षया न केवलं व्यक्तेः विकासः, वरं सामाजिकी चेतनापि जागर्ति। परिस्थितिवशात् आचारविचारव्यवहारेषु अपि बालकेषु, प्रौढेषु परिवर्तनमायाति। शिक्षितसमुदाये जनसङ्ख्यावर्धनावरोधेषु जागर्तिः दृश्यते। दीनेषु, निरक्षरेषु शिशूत्पादनमेव लक्ष्यं प्रतीयते। तेषां भरणे पोषणे च ध्यानं नास्ति। प्रतिविद्यालयमस्याः जनशिक्षायोजनायाः प्रसारेण सर्वासां योजनानां साफल्यमवश्यं भविष्यति नात्र सन्देहः।

शब्दार्थ जागर्ति = जागती है। जनसङ्ख्यावर्धनावरोधेषु = जनसंख्या की वृद्धि को रोकने में। शिशूत्पादनम् एव = बच्चे पैदा करना ही। प्रतीयते = प्रतीत होता है। नात्र = नहीं, इसमें।

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में जनसंख्या की शिक्षा देने के लाभ को बताया गया है।

अनुवाद शिक्षा से केवल व्यक्ति का विकास ही नहीं होता है, वरन् सामाजिक चेतना भी जागती है। परिस्थितियों के कारण बालकों और प्रौढ़ों में आचार, विचार और व्यवहार में परिवर्तन आता है। शिक्षित वर्ग में जनसंख्या को बढ़ने से रोकने में जागरूकता दिखाई पड़ती है। दोनों और अनपढ़ों में बच्चे उत्पन्न करना ही लक्ष्य प्रतीत होता है। उनके भरण-पोषण पर ध्यान नहीं है। प्रत्येक विद्यालय में इस जनशिक्षा की योजना के प्रसार से सभी योजनाओं की सफलता अवश्य होगी, इसमें सन्देह नहीं है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पंचवर्षीय योजना का उद्देश्य बताइए। [2006,08, 12]
उत्तर :
सन् 1947 ई० में देश के स्वतन्त्र होने और सार्वभौमिक सत्ता से सम्पन्न होने के बाद देश के आर्थिक और सामाजिक रूप से उत्थान के लिए एक योजना-समिति बनायी गयी। इस योजना-समिति द्वारा देश के सर्वाधिक उन्नयन हेतु पाँच वर्षों में हो सकने योग्य कार्यों को जो विवरण प्रकाशित किया गया, वही पंचवर्षीय योजना के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

प्रश्न 2.
पंचवर्षीय योजनाओं से होने वाले लाभों (महत्त्व) को संक्षेप में लिखिए। [2006,07,09]
उत्तर :
चवर्षीय योजनाओं से हमारे देश की राष्ट्रीय आय में वृद्धि, महँगाई की रोकथाम, दैनिक उपयोग की वस्तुओं की प्राप्ति में सुगमता, छोटे-बड़े उद्योगों की ओर ध्यानाकर्षण, खाद्यान्नों में आत्मनिर्भरता, परिवार नियोजन, नहरों का निर्माण और नलकूप लगाना, गाँवों में बिजली का प्रबन्ध, वृक्षारोपण आदि अनेक लाभ हुए। चिकित्सा के क्षेत्र में यक्ष्मा, चेचक, मलेरिया आदि संक्रामक और भयानक रोगों से पूर्णतया छुटकारा मिला। एक्स-रे से भीतरी रोगों का पता लगाना सम्भव हुआ। नहरों के निर्माण से भूमि उर्वरा व धान्यसम्पन्न हुई और मानवों व पशु-पक्षियों को पेयजल प्राप्त हुआ। रेलमार्गों के विस्तार, उनकी गति में वृद्धि तथा डीजल इंजनों के प्रयोग से आवागमन में लगने वाले समय की बचत हुई।

प्रश्न 3.
प्रथम पंचवर्षीय योजना में किसका सर्वाधिक महत्त्व स्वीकार किया गया? [2008]
उत्तर :
प्रथम पंचवर्षीय योजना में कृषि की उन्नति को सर्वाधिक महत्त्व दिया गया। इसके अन्तर्गत 135 योजनाएँ निहित थीं, जिनमें भाखड़ा-नांगल, हीराकुड, दामोदर, तुंगभद्रा, मयूराक्षी और रिहन्द बाँधों की योजनाएँ बनाई गयीं। इन योजनाओं में कृषि-सिंचन, जल-प्रवाह नियन्त्रण तथा विद्युत-शक्ति के उत्पादन के क्षेत्र में पर्याप्त लाभ हुए।

प्रश्न 4.
बाँधों के निर्माण से देश को क्या लाभ हुए? [2008, 10]
उत्तरं :
बाँधों के निर्माण से देश को खेतों की सिंचाई के लिए पर्याप्त जल उपलब्ध हुआ, जल के प्रवाह पर नियन्त्रण स्थापित किया गया तथा विद्युत-शक्ति के उत्पादन के क्षेत्र में अत्यधिक वृद्धि हुई। इन सभी से देश को अनेक लाभ हुए।

प्रश्न 5.
प्रथम पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल लिखिए। [2007,15]
उत्तर :
प्रथम पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल है-1951-56

प्रश्न 6.
परतन्त्रता काल में विदेशियों द्वारा भारत में किस प्रयोजन के लिए कार्य किये गये? [2009]
उत्तर :
परतन्त्रता काल में विदेशियों द्वारा भारत में समस्त कार्य अपने हित की दृष्टि से किये गये। भारत के हित की दृष्टि से कोई कार्य नहीं किया गया।

प्रश्न 7.
क्या पंचवर्षीय योजनाओं से देश को अपेक्षित लाभ हुआ?
या
योजनाओं के क्रियान्वयन से जितना लाभ अपेक्षित था, उतना क्यों नहीं प्राप्त हो सका?
उत्तर :
पंचवर्षीय योजनाओं से देश और प्रत्येक व्यक्ति को जितने लाभ की अपेक्षा थी, उतना लाभ नहीं हुआ। इसका कारण जनसंख्या में हुई तीव्रगति से वृद्धि है। जब तक जनसंख्या में अपेक्षित कमी नहीं आएगी तब तक पंचवर्षीय योजनाओं से उल्लेखनीय सफलता नहीं मिल सकती। सरकार इसके लिए सतत प्रयत्नशील है।

प्रश्न 8.
भारत में पंचवर्षीय योजनाएँ किस प्रकार आरम्भ हुईं? या भारत में पंचवर्षीय योजनाओं की आवश्यकता क्यों पड़ीं?
उत्तर :
भारत में शताधिक वर्षों तक चले अंग्रेजी शासन ने भारत के कल्याण और उन्नति की बात नहीं सोची। उन्होंने भारत में जितने भी कार्य किये, वे अपनी ही भलाई के लिए किये न कि भारतीयों की भलाई के लिए। इसी कारण 15 अगस्त, 1947 को भारत के स्वतन्त्र होने पर तत्कालीन भारतीय नेतृत्व के सामने अनेक समस्याएँ खड़ी हो गयीं। स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पं० जवाहरलाल नेहरू रूस की साम्यवादी व्यवस्था से बहुत प्रभावित थे। वे यह जानते थे कि रूस में कम्युनिस्टों को शासन प्रारम्भ होने के बाद पंचवर्षीय योजनाएँ बनायी गयी थीं और यह निश्चित किया गया था कि पाँच वर्षों में उन्हें कौन-कौन से काम करने हैं। रूस के ढंग पर ही नेहरू जी ने भी भारत में पंचवर्षीय योजनाएँ प्रारम्भ कीं और इन योजनाओं के लिए एक समिति बना दी गयी। समिति यह निश्चय करती थी कि किस पंचवर्षीय योजना में कौन-से कार्य किये जाएँ और किन पर कितना व्यय किया जाए। इन्हीं पंचवर्षीय योजनाओं ने भारत की कायाकल्प करे। दिया।

प्रश्न 9.
शिक्षा के क्या लाभ हैं?
उत्तर :
[ संकेत ‘पाठ-सारांश’ के उपशीर्षक “शिक्षा से लाभ” को अपने शब्दों में लिखें।]

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