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लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1
हिन्दी गद्य के प्राचीन रूप पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
विद्वानों के अनुसार हिन्दी गद्य के प्राचीन प्रयोग ब्रजभाषा एवं राजस्थानी में मिलते हैं। इसी से हिन्दी गद्य का विकास हुआ है। राजस्थानी गद्य का आविर्भाव 13वीं शताब्दी से तथा ब्रजभाषा गद्य का आविर्भाव 16वीं शताब्दी से माना जाता है।
प्रश्न 2
‘नाटक’ किसे कहते हैं ? नाटक का अर्थ बताइए और यह भी स्पष्ट कीजिए कि नाटक को रूपक क्यों कहा जाता है ?
उत्तर
नाटक के पात्रों एवं घटनाओं का चित्रण किसी प्रसिद्ध पात्र की अनुकृति के रूप में किया जाता है अर्थात् नाटक के पात्रों एवं घटनाओं पर किन्हीं अन्य व्यक्तियों एवं घटनाओं को आरोपित किया जाता है। ‘रूप’ के इस आरोप के कारण ही इसे ‘रूपक’ कहा जाता है।
प्रश्न 3
हिन्दी गद्य के इतिहास में भारतेन्दु युग के योगदान का वर्णन कीजिए।
या
हिन्दी गद्य के विकास में भारतेन्दु युग का महत्त्व बताइए।
उत्तर
भारतेन्दु से पूर्व हिन्दी गद्य का कोई निश्चित स्वरूप नहीं था। लेखकों की रचनाओं में या तो उर्दू-फारसी के शब्दों की प्रचुरता थी या फिर संस्कृत के तत्सम शब्दों की। यह भाषा जनता की भाषा नहीं थी। भारतेन्दु ने अपने गद्य में न तो अधिक संस्कृतनिष्ठ शब्दों का प्रयोग किया और न ही अधिक अरबीफारसी के शब्दों का, वरन् उन्होंने अपनी रचनाओं में सामान्य बोलचाल के शब्दों, मुहावरों, लोकोक्तियों को स्थान देकर हिन्दी गद्य को जीवन्त बनाया। इसी कारण जन-सामान्य ने इनकी रचनाओं को सहज भाव से स्वीकार कर लिया। इन्होंने हिन्दी में नाटक, उपन्यास, निबन्ध इत्यादि गद्य की विधाओं का सूत्रपात किया तथा तत्कालीन लेखकों को विविध विषयों की रचना करने को प्रेरित किया।
प्रश्न 4
हिन्दी गद्य के विकास में आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी जी का क्या योगदान है ?
उत्तर
हिन्दी गद्य के विकास में आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी जी की प्रमुख देन निम्नलिखित हैं
- द्विवेदी जी ने भाषा में व्याकरण सम्बन्धी अशुद्धियों, पद-विन्यास एवं वाक्य-विन्यास की अनियमितता को दूर किया।
- उन्होंने नये-नये लेखकों और कवियों को व्याकरणनिष्ठ और संयमित खड़ी बोली में लिखने के लिए प्रोत्साहित किया।
- उन्होंने अन्य भाषाओं के साहित्य का हिन्दी में अनुवाद कराया।
- भाषा के शब्द-भण्डार में वृद्धि की जिससे विविध प्रकार की भाषा-शैलियों का जन्म हुआ, जिसके परिणामस्वरूप गद्य के विविध रूपों का विकास हुआ।
प्रश्न 5
हिन्दी गद्य-साहित्य के विकास में द्विवेदी युग का निर्धारण कीजिए। इस युग की भाषा-शैली पर एक संक्षिप्त टिप्पणी भी लिखिए।
उत्तर
हिन्दी गद्य-साहित्य के विकास में सन् 1900 से 1920 ई० तक के समय को ‘द्विवेदी युग कहते हैं। आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी के प्रयासों के फलस्वरूप इस युग में हिन्दी गद्य का रूप परिमार्जित, साहित्यिक एवं परिनिष्ठित हो गया। द्विवेदी युग के हिन्दी गद्य की भाषा शुद्ध, व्याकरणनिष्ठ एवं परिष्कृत है। इस युग की रचनाओं में संस्कृत के तत्सम एवं तद्भव शब्दों के साथ-साथ उर्दू एवं अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग भी मिलता है। विचारात्मक, पाण्डित्यपूर्ण, व्यंग्यात्मक, विश्लेषणात्मक, आवेगशील, चित्रात्मक आदि शैलियों के प्रयोग इस युग की प्रमुख विशेषताएँ हैं।
प्रश्न 6
‘जीवनी’ किसे कहते हैं ? जीवनी-साहित्य की विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए इसके आरम्भ का समय बताइए।
उत्तर
जब कोई लेखक किसी व्यक्ति के जन्म से लेकर उसकी मृत्यु तक की प्रमुख घटनाओं को क्रमबद्ध रूप में इस प्रकार चित्रित करता है कि उसका सम्पूर्ण व्यक्तित्व स्पष्ट हो उठे तो ऐसी रचना को ‘जीवनी’ कहते हैं। जीवनी-साहित्य की विशेषताओं में लेखक की तटस्थता, यथार्थ चित्रण, घटनाक्रम की क्रमबद्धता तथा उसके नायक के जीवन की प्रमुख घटनाओं का प्रस्तुतीकरण निहित होता है। हिन्दी में जीवनी-साहित्य का प्रादुर्भाव भारतेन्दु युग से माना जाता है।
प्रश्न 7
‘कहानी’ किसे कहते हैं ? हिन्दी कहानी के विकास की रूपरेखा प्रस्तुत कीजिए।
या
‘ग्यारह वर्ष का समय’ के लेखक का नाम लिखिए।
उत्तर
‘कहानी’ गद्य-साहित्य की वह विधा है, जिसमें जीवन के किसी एक मार्मिक तथ्य या घटना को पात्रों, संवाद एवं घटनाक्रम के माध्यम से नाटकीय रूप में अभिव्यक्ति दी जाती है। ‘कहानी हमारे देश में प्राचीन काल से ही कही-सुनी जाती रही है। सर्वप्रथम पुराणों में कहानी के दर्शन होते हैं। मूलत: आख्यात्मक शैली में रचित होने के कारण इन्हें ‘आख्यायिका’ भी कहा जाता था। वृहत् कथा, बैताल पचीसी, सिंहासन बत्तीसी, कादम्बरी आदि इसी कोटि की रचनाएँ हैं। आधुनिक साहित्यिक कहानियों का उद्देश्य एवं शिल्प इस आख्यायिका से भिन्न है। इनमें कहानी को कथ्य, पात्रों एवं घटनाओं के चित्रण द्वारा कलात्मक रूप से प्रस्तुत किया जाता है। इसका आरम्भ विधिवत् रूप से ‘सरस्वती’ पत्रिका के । प्रकाशन से अर्थात् सन् 1900 ई० से माना जाता है। किशोरीलाल गोस्वामी की कहानी ‘इन्दुमती’ हिन्दी की पहली मौलिक कहानी मानी जाती है। इसके बाद ‘ग्यारह वर्ष का समय’ (रामचन्द्र शुक्ल) और ‘दुलाई वाली’ आती हैं। प्रेमचन्द के समय में कहानियों का पूर्ण विकास हुआ।
प्रश्न 8
‘संस्मरण’ किसे कहते हैं ? संस्मरण एवं आत्मकथा के दो अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
जब लेखक अपने निकट सम्पर्क में आने वाली विशिष्ट, विचित्र, प्रिय और आकर्षक घटनाओं, दृश्यों या व्यक्तियों को स्मृति के सहारे पुनः अपनी कल्पना में मूर्ति करके उनका शाब्दिक चित्रण करता है, तो उसे ‘संस्मरण’ कहते हैं। कल्पनाशीलता, यथार्थ चित्रण, संवेदनशीलता, अभिव्यक्ति की कुशलता आदि संस्मरण की विशेषताएँ हैं।
अन्तर–‘आत्मकथा’ में लेखक स्वयं के जीवन को चित्रित करता है, जबकि संस्मरण’ में वह किसी दूसरे व्यक्ति या वस्तु, घटना, दृश्य आदि का चित्रण करता है। आत्मकथा में आपबीती होती है, जबकि संस्मरण में अन्य व्यक्ति के व्यक्तित्व की विशेषताओं का वर्णन किया जाता है।
प्रश्न 9
‘आत्मकथा’ किसे कहते हैं ? इसकी विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
जब लेखक किसी कृति में अपने जीवन की प्रमुख घटनाओं को स्वयं लिपिबद्ध करता है तो उसे ‘आत्मकथा’ कहते हैं।
विशेषताएँ–घटनाओं की क्रमबद्धता, लेखक का आत्मनिरीक्षण से युक्त दृष्टिकोण, उसकी तटस्थता, घटना के समय उत्पन्न भावों एवं तत्कालीन प्रभावों की कुशल अभिव्यक्ति आदि आत्मकथासाहित्य की विशेषताएँ हैं।
प्रश्न 10
आलोचना किसे कहते हैं ? इसका अर्थ बताते हुए इसकी व्याख्या कीजिए।
उत्तर
‘आलोचना’ का शाब्दिक अर्थ है ‘किसी वस्तु को भली प्रकार देखना। इससे किसी वस्तु के । गुण-दोष प्रकट हो जाते हैं। इसलिए किसी कृति का अध्ययन करके जब उसके गुण-दोषों को प्रकट किया जाता है तो उसे ‘आलोचना’ कहते हैं। इसके लिए ‘समीक्षा’ शब्द का प्रयोग भी किया जाता है। हिन्दी में आधुनिक आलोचना का प्रारम्भ ‘भारतेन्दु युग’ से माना जाता है।
प्रश्न 11
रेखाचित्र किसे कहते हैं ? इसकी विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए संस्मरण से इसका अन्तर बताइए।
या
संस्मरण और रेखाचित्र के मौलिक अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
जब लेखक अपने सम्पर्क में आने वाले किसी व्यक्ति, वस्तु, घटना आदि को कम शब्दों के द्वारा सांकेतिक रूप से चित्रित करता है तो उसकी उस कृति को रेखाचित्र’ कहते हैं। रेखाचित्र सांकेतिक, व्यंजक और यथार्थपरक होता है। रेखाचित्र का विकास छायावादोत्तर युग में हुआ है।
संस्मरण एवं रेखाचित्र में अन्तर है। संस्मरण में विषय-वस्तु का सर्वांगीण चित्रण होता है, जबकि रेखाचित्र में कुछ शाब्दिक रेखाओं के द्वारा ही विषय-वस्तु की विशेषताओं को उभारकर प्रस्तुत किया जाता है। संस्मरण के शब्दचित्र सदा पूर्ण होते हैं, जबकि रेखाचित्र के अपूर्ण या खण्डित भी हो सकते हैं। संस्मरण अभिधामूलक होता है, जबकि रेखाचित्र सांकेतिक और व्यंजक।।
प्रश्न 12
रिपोर्ताज से आप क्या समझते हैं ? इसकी विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
‘रिपोर्ट’ के कलात्मक एवं साहित्यिक रूप को ‘रिपोर्ताज’ कहते हैं। इसमें सम-सामयिक घटनाओं को उनके यथार्थ रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
रिपोर्ताज लेखक के लिए स्वयं घटना का प्रत्यक्ष निरीक्षण करना आवश्यक होता है, इसमें कल्पना का कोई स्थान नहीं होता। इसका उपयोग पत्रकारिता के क्षेत्र में अधिक होता है। घटना का यथार्थ चित्रण, कुशल अभिव्यक्ति, प्रभावोत्पादकता आदि रिपोर्ताज की विशेषताएँ हैं । इस विधा का विकास छायावादोत्तर युग में हुआ है।
प्रश्न 13
भेटवार्ता से आप क्या समझते हैं ? इसकी विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
किसी महत्त्वपूर्ण व्यक्ति से मिलकर, किसी विशेष विषय पर उसके विचारों को प्रश्नोत्तर के माध्यम से प्राप्त करके लेखक जब उन्हें यथावत लिपिबद्ध करता है तो उसे ‘भेटवार्ता’ कहते हैं। ‘भेटवार्ता शब्द अंग्रेजी भाषा के इण्टरव्यू का समानार्थी है। भेटवार्ता वास्तविक भी होती है और काल्पनिक भी। हिन्दी-साहित्य में इसके दोनों रूप प्राप्त होते हैं। इस विधा का प्रारम्भ छायावादी युग से माना जाता है।
प्रश्न 14
डायरी साहित्य किसे कहते हैं ? इसकी मुख्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। आत्मकथा एवं डायरी में क्या अन्तर है?
उत्तर
जब लेखक तिथि-विशेष में घटित घटनाओं को यथातथ्य तथा तिथिवार लिपिबद्ध करता है, तो उसकी वह रचना ‘डायरी’ कहलाती है। डायरी महत्त्वपूर्ण तिथियों की क्रमबद्ध घटनाक्रमों से सम्बन्धित भी हो सकती है और दैनिक-पुस्तिका के रूप में भी हो सकती है।
यथार्थ चित्रण, तिथिवार क्रमबद्धता, लेखक के निजी दृष्टिकोणों की घटना से सम्बन्धित अभिव्यक्ति आदि डायरी साहित्य की विशेषताएँ हैं। इस विधा का आविर्भाव छायावादोत्तर युग से माना जाता है।
‘आत्मकथा’ एवं ‘डायरी’ में पर्याप्त अन्तर हैं। ‘आत्मकथा’ में लेखक अतीत में घटी घटनाओं को कल्पना में पुनः मूर्त करके लिखता है, जबकि डायरी’ तिथियों के अनुसार लिखी जाती है। ‘आत्मकथा’ में लेखक अपने जीवन की घटनाओं में स्वयं को रखकर अपना आत्मविश्लेषण करता है, जबकि ‘डायरी’ में घटनाओं के प्रति उसका दृष्टिकोण लिपिबद्ध होता है। ‘आत्मकथा’ में तिथि का उल्लेख नहीं होता, जबकि ‘डायरी’ में यह अनिवार्य रूप से आवश्यक होता है।
प्रश्न 15
पत्र-साहित्य किसे कहते हैं ?
उत्तर
पत्रों के द्वारा किसी व्यक्ति से सम्बन्ध बनाकर किसी विषय पर जो लिपिबद्ध वार्तालाप प्रारम्भ किया जाता है, उसका सम्पूर्ण संकलित रूप ‘पत्र-साहित्य’ कहलाता है। इसमें लेखक किसी व्यक्ति को पत्र लिखकर किसी विषय पर उसके विचारों को जानना चाहता है। उसका उत्तर प्राप्त होने पर वह उस उत्तर का विश्लेषण करता है और उत्पन्न शंकाओं के समाधान हेतु पुनः पत्र लिखता है। इस प्रकार एक प्रक्रिया चल पड़ती है जो पत्रों के रूप में लिपिबद्ध होती जाती है। जब यह प्रक्रिया पूर्ण हो जाती है तो दोनों ओर के पत्रों के उस संकलन को पत्र-साहित्य कहा जाता है।
प्रश्न 16
शुक्ल युग को हिन्दी निबन्ध का उत्कर्ष काल क्यों माना जाता है ?
उत्तर
यद्यपि द्विवेदी युग में हिन्दी निबन्ध-विधा भाषा एवं शैली दोनों ही दृष्टियों से प्रौढ़ हो गयी थी, किन्तु आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने निबन्ध को वैचारिक क्षेत्र में वैज्ञानिक विश्लेषण की प्रवृत्ति एवं गम्भीरता प्रदान की। अतः भाषा-शैली, गम्भीरता, चिन्तन, मौलिकता आदि प्रत्येक क्षेत्र में निबन्ध-विधा परिष्कार को प्राप्त हुई। इसीलिए शुक्ल युग को हिन्दी निबन्ध का उत्कर्ष काल कहा जाता है। प
प्रश्न 17
हिन्दी नाटक के विकास में जयशंकर प्रसाद के योगदान का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर
प्रसाद जी ने भारतीय और पाश्चात्य नाट्य-कला के तत्वों को मिलाकर एक नवीन शैली का विकास किया। इनके सामाजिक एवं ऐतिहासिक नाटकों में संघर्ष की प्रधानता है तथा मनोवैज्ञानिक चरित्र-चित्रण के साथ नवीन शैली का प्रयोग किया गया है। साहित्यिकता एवं मंचीयता इनके नाटकों की विशेषता है।
प्रश्न 18
प्रसादोत्तर युग के हिन्दी नाटकों की प्रमुख विशेषता बताइट।
उत्तर
प्रसादोत्तर नाटकों में भारतीय एवं पाश्चात्य शैली के तत्त्वों का एक साथ समावेश पाया जाता है। इन नाटकों में राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक समस्याओं का चित्रण हुआ है। इनकी विषय-वस्तु यथार्थवादी धरातल पर संरचित है।
प्रश्न 19
शुक्ल जी के पश्चात् हिन्दी की निबन्ध विधा के विकास का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर
शुक्लोत्तर युग में साहित्यिक एवं समीक्षात्मक निबन्धों की रचना की गयी। इन निबन्धों में जहाँ भाषा-शैली की प्रौढ़ता मिलती है, वहीं चिन्तन की गम्भीरता भी। इनमें आत्मपरक (वैयक्तिक) भाषा का प्रयोग हुआ है।
|| शुक्ल जी के पश्चात् हिन्दी में आलोचनात्मक निबन्ध साहित्य की भी पर्याप्त श्रीवृद्धि हुई। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, डॉ० रामविलास शर्मा, नन्ददुलारे वाजपेयी, शान्तिप्रिय द्विवेदी, शिवदान सिंह चौहान आदि लेखकों ने आलोचनात्मक निबन्ध-साहित्य को नयी दिशा प्रदान कर विकास के पथ पर अग्रसर किया।
प्रश्न 20
हिन्दी कहानी के विकास में प्रेमचन्द अथवा प्रसाद के योगदान का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
हिन्दी कहानी के क्षेत्र में प्रेमचन्द एवं प्रसाद ने युगान्तरकारी कार्य किया। मुंशी प्रेमचन्द ने सरस, सरल एवं व्यावहारिक भाषा-शैली में जीवन का मार्मिक एवं यथार्थ चित्रण करने वाली आदर्शोन्मुख कहानियाँ लिखीं । ‘कफन’, ‘शतरंज के खिलाड़ी’, ‘पूस की रात’, ‘पंच परमेश्वर’, ‘मन्त्र’ आदि कहानियाँ उल्लेखनीय हैं।
प्रसाद जी ने उत्तम भाषा, भाव एवं कल्पनापूर्ण कौतूहल से युक्त उत्कृष्ट कहानियाँ लिखीं। अधिकतर कहानियों में मानव मन के अन्तर्द्वन्द्व का चित्रण किया गया है। ‘पुरस्कार’, ‘आकाशदीप’, ‘मधुआ’, ‘गुण्डा’, ‘ममता’ आदि इनकी श्रेष्ठ कहानियाँ हैं।
प्रश्न 21
हिन्दी की नयी कहानी की विशेषताएँ और उद्देश्य बताइए।
उत्तर
हिन्दी की नयी कहानियों में आज के युग की दिशाहीनता, उत्कण्ठा, उलझन, मानसिक भटकाव और अन्तर्द्वन्द्वों का सजीव चित्रण नये शैली-विधान में किया गया है। नयी कहानियों का मुख्य उद्देश्य जीवन के भोगे हुए यथार्थ को आधुनिक भाव-बोध के धरातल पर प्रस्तुत करना है।
प्रश्न 22
छायावादी युग के गद्य की किन्हीं दो विशेषताओं को लिखिए।
उत्तर
छायावादी युग के गद्य की अनेक विशेषताएँ हैं। प्रेमचन्द, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल एवं जयशंकर प्रसाद ने जो गद्य रचनाएँ कीं, उनका रूप अत्यन्त प्रौढ़, परिष्कृत एवं विकसित है। विषयों, शैलियों, विधाओं की विविधता इस काल के गद्य की एक प्रमुख विशेषता है। इस युग में नाटक, उपन्यास, निबन्ध, कहानी, आलोचना आदि विविध क्षेत्रों में उत्कृष्ट कोटि की गद्य-रचना हुई।
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