Sansadhan Kise Kahate Hain: हेलो स्टूडेंट्स, आज हमने यहां पर संसाधन की परिभाषा, प्रकार और उदाहरण ( Sansadhan in hindi) के बारे में विस्तार से बताया है। यह हर कक्षा की परीक्षा में पूछा जाने वाले यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है।
Sansadhan Kise Kahate Hain
हम लोगों की आवश्यकता की पूर्ति जिस चीज से होती है ,उसे आसान भाषा में संसाधन कहते हैं। हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति अथवा हमारी किसी कठिनाई का निवारण करने वाले स्रोत को संसाधन कहते हैं।
आप अपने जीवन में अनेक वस्तुओं का उपयोग करते हैं। उपयोग में आने वाली ये सभी वस्तुएँ संसाधन हैं। संसाधन भौतिक और जैविक दोनों हो सकते हैं। जहाँ तक एक ओर भूमि, मृदा, जल, खनिज जैसे भौतिक पदार्थ मानवीय आकांक्षाओं की पूर्ति में सहायक होकर संसाधन बन जाते हैं, वहीं दूसरी ओर जैविक पदार्थ, यथा, वनस्पति, वन्य-जीव तथा जलीय-जीव, मानवीय-जीवन को सुखमय बनाने में पीछे नहीं हैं।
वर्तमान परिवेश में सेवा को भी संसाधन में गया है। कोई गायक या कवि या चित्रकार अपने क्रिया कलाप से पैसा कमाता है या खुद को संतुष्ट करता है, तब उसके द्वारा ये कार्य कलाप भी संसाधन कहलाएंगे। कवि का कविता रचना, चित्रकार की चित्रकारी, गायक की गायिकी भी संसाधन हैं।
संसाधन की परिभाषा
“संसाधन पर्यावरण की वे विशेषताएं हैं जो मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति में सक्षम मानी जाती हैं, जैसे ही उन्हे मानव की आवश्यकताओं और क्षमताओं द्वारा उपयोगिता प्रदान की जाती हैं.”
जेम्स फिशर के अनुसार संसाधन की परिभाषा : ” संसाधन वह कोई भी वस्तु हैं जो मानवीय आवश्यकतों और इच्छाओं की पूर्ति करती हैं.”
स्मिथ एवं फिलिप्स के अनुसार : “भौतिक रूप से संसाधन वातावरण की वे प्रक्रियायें हैं जो मानव के उपयोग में आती हैं”
संसाधन के प्रकार
संसाधन के 2 प्रकार होते हैं –
- प्राकृतिक संसाधन
- मानवनिर्मित संसाधन
a. प्राकृतिक संसाधन क्या है
प्राकृतिक संसाधन वह संसाधन है जो पर्यावरण में प्राकृतिक रूप से निर्मित है. इस संसाधन के निर्माण में मनुष्यों का कोई हाँथ नहीं है. प्राकृतिक संसाधन के उदाहरण है – सूर्य प्रकाश, भूमिगत जल, फल, सब्जियां, हवा इत्यादि.
b. मानव निर्मित संसाधन
मानव निर्मित संसाधन का तात्पर्य है. प्राकृतिक संसाधन का उपयोग करके नया देना या कुछ नया निर्मित करता है. जैसे कि लौह अयस्क उस समय तक संसाधन नहीं था जब तक लोगों ने उससे लोहा बनाना नहीं सीखा था.
मानवनिर्मित संसाधन के उदाहरण – कुर्सी-टेबल, वाहन, सड़क, प्रौद्योगिकी, रेल्वे लाइन इत्यादि.
उत्पत्ति के आधार पर संसाधनों का वर्गीकरण
उत्पत्ति के आधार पर संसधान को 2 भागों में वर्गीकृत किया गया है –
- जैव संसाधन
- अजैव संसाधन
जैव संसाधन क्या है?
जीन संसाधनों की प्राप्ति जैवमण्डल से होती है. उसे जैव संसाधन कहते हैं. उदाहरण – मतस्य, पशुधन, वनस्पत्ति, प्राणी, गाय-भैंस इत्यादि.
अजैव संसाधन क्या है?
निर्जीव वस्तुओं से प्राप्त संसाधनों को अजैव संसाधन कहते हैं. जैसे – चट्टानें, धातुएं इत्यादि.
संसाधन नियोजन क्या होता है?
संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग ही संसाधन नियोजन है। वर्तमान परिवेश में संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग हमारे सामने चुनौती बनकर खड़ा है। संसाधनों के विवेकपूर्ण दोहन हेतु सर्वमान्य रणनीति तैयार करना संसाधन नियोजन की प्राथमिकता है।
किसी भी देश के विकास के लिए संसाधन नियोजन बहुत जरूरी होता है। भारत को इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है क्योंकि यहां संसाधनों कि उपलब्धता में बहुत विभिन्नता है और इसके साथ साथ अधिक जनसंख्या भी है। यहाँ कई ऐसे प्रदेश हैं जो संसाधन सम्पन्न हैं। कई ऐसे भी प्रदेश हैं जो संसाधन की दृष्टि से काफी विपन्न हैं।
कुछ ऐसे भी प्रदेश हैं जहाँ एक ही प्रकार के संसाधनों का प्रचुर भंडार है और अन्य दूसरे संसाधनों में वह गरीब हैं। जैसे-झारखंड, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ आदि ऐसे प्रदेश हैं, जहाँ खनिज एवं कोयला का प्रचुर भंडार है। उसी प्रकार बिहार भी चूना-पत्थर एवं पाइराईट जैसे खनिजों में धनी है।
अरूणाचल प्रदेश में जल संसाधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। परन्तु कतिपय कारणों से उसका विकास नहीं हो पाया है। राजस्थान में सौर ऊर्जा के साथ-साथ पवन ऊर्जा की प्रचुरता है। परन्तु यह राज्य जल संसाधन की दृष्टि से अति निर्धन है। भारत के अंतर्गत लद्दाख जैसे भी क्षेत्र हैं, जो शीत मरूस्थल के रूप में अन्य भागों अलग-थलग हो गया है।
लेकिन यह प्रदेश सांस्कृतिक विरासत का धनी है। यहाँ जल, महत्वपूर्ण खनिज एवं मौलिक अवसंरचना की बहुत कमी है। अतः राष्ट्रीय, प्रांतीय तथा अन्य स्थानीय स्तरों पर संसाधनों के समायोजन एवं संतुलन के लिए संसाधन-नियोजन की अनिवार्य आवश्यकता है।
संसाधनों का संरक्षण
सभ्यता एवं संस्कृति के विकास में संसाधनों की अहम् भूमिका होती है। किन्तु, संसाधनों का अविवेकपूर्ण या अतिशय उपयोग विविध प्रकार के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं पर्यावरणीय समस्याओं को जन्म देते हैं। इन समस्याओं के समाधान हेतु विभिन्न स्तरों पर संरक्षण की आवश्यकता है।
संसाधनों का नियोजित एवं विवेकपूर्ण उपयोग ही संरक्षण कहलाता है। प्राचीन काल से ही संसाधनों का संरक्षण, समाज सुधारकों, नेताओं, चिंतकों एवं पर्यावरणविदों के लिए एक चिन्तनीय ज्वलंत विषय रहा है। इस संदर्भ में महान् दार्शनिक एवं चिंतक महात्मा गाँधी के विचार प्रासांगिक है- “हमारे पास पेट भरने के लिए बहुत कुछ हैं, लेकिन पेटी भरने के लिए नहीं।”
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