मुंशी प्रेमचन्द का जीवन परिचय | Munshi Premchand Ka Jeevan Parichay

मुंशी प्रेमचन्‍द्र जी (सन् 1880-1936)

जीवन परिचय:

उपन्‍यास सम्राट् प्रेमचन्‍द्र का जन्‍म एक गरीब घराने में काशी से चार मील दूर लमही नामक गॉंव में 31 जुलाई 1880 ई. को हुआ था। इनके पिता अजायब राय डाक-मुंशी थे। इनकी माता का नाम आनंदी देवी था।

सात साल की अवस्‍था में माता का और चौदह वर्ष की अवस्‍था में पिता का देहानत हो गया। घर में यों ही बहुत निर्धनता थी, पिता की मृत्‍यु के पश्‍चात् इनके सिर पर कठिनाइयों का पहाड़ टूट पड़ा। रोटी कमानेे की चिन्‍ता बहुत जल्‍दी इनके सिर पर आ पड़ी ट्यूशन करके इन्‍होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की। इनका विवाह कम उम्र में हो गया था, इनके अनुरूप नहीं था।

अत: शिवरानी देवी के साथ दूसरा विवाह किया।स्‍कूल-मास्‍टरी की नौकरी करते हुए इन्‍होंने एफ.ए. ओर बी.ए. पास किया। स्‍कूल-मास्‍टरी के रास्‍ते पर चलते-चलते सन् 1921 में वह गोरखपुर में स्‍कूलों के डिप्‍टी इन्‍स्‍पेक्‍टर बन गये। जब गॉंधी जी ने सरकारी नौकरी से इस्‍तीफे का बिगुल बजाया तो उसे सुनकर प्रेमचन्‍द्र ने भी तुरन्‍त त्‍याग-पत्र दे दिया।

उसके बाद क1छ दिनों तक इन्‍होंने कानपुर के मारवाड़ी सकूल में अध्‍यापन किया फिर ‘काशी विद्यापीठ’ में प्रधान अध्‍यापक नियुक्‍त हुए। इसके बाद अनेक पत्र-पत्रिकाओं का सम्‍पादन करते हुए काशी में प्रेस खोला ।

सन् 1934-35 में आपने आठ हजार रुपये वार्षिक वेतन पर मुम्‍बई की एक फिल्‍म कम्‍पनी में नौकरी कर ली। जलोदर रोग के कारण 8 अक्‍टूबर 1936 ई. को काशी स्थित इनके गॉंव में इनका देहावसान हा गया।

प्रेमचन्‍द्र जी की कृतियॉं:

  • उपन्‍यास- कर्मभूमि, कायाकल्‍प, निर्मला, प्रतिाा, प्रेमाश्रम, वरदान, सेवासदन, रंगभूमि, गबन, गोदान । 
  • नाटक- कर्बला, प्रेम की वेदी, संग्राम, रूठी रानी,। 
  • जीवन-चरित- कलम, तलवार औरत्‍याग, दुर्गादास, महात्‍मा शेखसादी , और राम चर्चा, । 
  • निबन्‍ध-संग्रह– कुछ विचार 
  • सम्‍पादित- गल्‍प रत्‍न और गल्‍प-समुच्‍चय। 
  • अनूदित- अहंकार, सुखदास, आजाद-कथा, चाँँदी की उिबिया, टॉलस्‍आय की कहानियॉं, सृष्टि का आरम्‍भ। 
  • कहानी-संग्रह- नवनिधि, ग्राम्‍य जीवन की कहानियॉं, प्रेरणा, कफन, प्रेम पचीसी, कुत्‍ते की कहानी, प्रेम-प्रसून, प्रेम-चतुर्थी, मनमोदक, समर-यात्रा, सप्‍त-सरोज, अग्नि-समाधि, प्रेम-गंगा सप्‍त-सुमन। 
  • पत्रिका- माधुरी तथा मर्यादा
  • पत्र- हंस और जागरण

साहित्यिक परिचय:

प्रेमचन्‍द्र जी में साहित्‍य-सृजन की जनमजात प्रतिभा विद्यमान थी। आरम्‍भ में ‘नवाब राय’ के नाम से उर्दू भाषा में कहानियॉं और उपन्‍यास लिखते थे। इनकी ‘सोजे वतन’ नामक क्रान्तिकारी रचना ने स्‍वाधीनता-संग्राम में ऐसी हलचल मचायी कि अंग्रेज सरकार ने इनकी यह कृति जब्‍त कर ली।

बाद में ‘प्रेमचन्‍द्र’ नाम रखकर हिन्‍दी साहित्‍य की साधना की और लगभग एक दर्जन उपन्‍यास और तीन सौ कहानियॉं लिखीं। इसके अतिरिक्‍त इन्‍होंने ‘माधुरी’ तथा ‘मर्यादा’ पत्रिकाओं का सम्‍पादन किया तथा ‘हंस’ व ‘जागरण’ नामक पत्र का प्रकाशन किया।

जनता की बात जनता की भाषा में कहकर तथा अपने कथा साहित्‍य के माध्‍यम से तत्‍कालीन निम्‍न एवं मध्‍यम वर्ग का सच्‍चा चित्र प्रसतुत करके प्रेमचन्‍द्र जी भारतीयों को हदय में समा गयें। सच्‍चे अर्थो में ‘कलम के सिपाही’ और जनता के दु:ख-दर्द के गायक इस महान् कथाकार को भारतीय साहित्‍य-जगत् में ‘उपन्‍यास सम्राट’ की उपाधि से विभूषित किया गया।

प्रेमचन्‍द्र जी की भाषा-शैली:

प्रेमचन्‍द्र जी की भाषा के दोरूप है- एक रूप तो वह है, जिसमें संस्‍कृत के तत्‍सम शब्‍दों की प्रधानता है और दूसरा रूप वह है, जिसमें उर्दू संस्‍कृत, हिनदी के व्‍यावहारिक शब्‍दों काप्रयोग किया गया है। यह भाषा अधिक सजीव, व्‍यावहारकि ओर प्रवाहमयी है।

इनकी भाषा सहज, सरल, व्‍यावहारिक, प्रवाह पूर्ण, मुहावरेदार एवं प्रभावशाली है। प्रेमचन्‍द्र विषय एवं भावों अनुयप शैली को परिवर्तित करने में दक्ष थे। इन्‍होंने अपने साहित्‍य में प्रमुख रूप में पॉंच शैलियों का प्रयोग किया है।

  • वर्णनात्‍मक
  • विवेचनात्‍मक
  • मनोवैज्ञानिक
  • हास्‍य-व्‍यंग्‍यप्रधान शैली
  • भावात्‍मक शैली

Note: प्रेमचन्‍द्र जी शुक्‍ल-युग के लेखक है।

मुंशी प्रेमचंद Wikipedia लिंक: Click Here

Remark:

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