कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर का जीवन परिचय | Kanhaiya Lal Mishra Prabhakar Ka Jeevan Parichay

कन्‍हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ (सन् 1906-1995 ई.)

कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर की जीवनी:

पूरा नामकन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’
जन्म29 मई, 1906
जन्म भूमिदेवबन्द, सहारनपुर
मृत्यु9 मई 1995
कर्म भूमिभारत
कर्म-क्षेत्रपत्रकार, निबंधकार
मुख्य रचनाएँ‘नयी पीढ़ी, नये विचार’, ‘ज़िन्दगी मुस्करायी’, ‘माटी हो गयी सोना’ आदि।
भाषाहिंदी
नागरिकताभारतीय
विशेषरामधारी सिंह दिनकर ने इन्हें ‘शैलियों का शैलीकार’ कहा था।

कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर का जीवन परिचय:

कन्‍हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ का जन्‍म 21 मई 1906 ई. को सहारनपुर जनपद के देवबन्‍द नामक कस्‍बेे में हुआ था। इनके पिता श्री रमादत्त मिश्र पापिण्‍डत्‍य-कर्म करते थे। वे मधुर स्‍वभाव के सन्‍तोषी ब्राह्मण थे, ‘प्रभाकर’ जी की माता का स्‍वभाव बड़ा ही तेज था।

घर की आर्थक परिस्थितियों के प्रतिकूल होने के कारण ‘प्रभाकर’ जी की प्रारम्भिक शिक्षा सुचारुरूपेण नहीं हो पायी। इन्‍होंने स्‍वाध्‍याय से ही हिन्‍दी, संस्‍कृत तथा अँग्रेजी आदि भाषाओं का गहन अध्‍ययन किया। बाद में वे खुर्जा के संस्‍कृत विद्यालय के विद्यार्थी बने, तभी इन्‍होंनेराष्‍ट्रीय नेता मौलाना आसफ अली का भाषण सुना, जिसके जादुई प्रभाव से वे परीक्षा त्‍यागकर देश-सेवा में संलग्‍न हो गये और तब से इन्‍होंने अपना सम्‍पूर्ण जीवन राष्‍ट्र-सेवा को समर्पित कर दिया।

‘प्रभाकर’ जी उदार, राष्‍ट्रवादी तथा मानवतावादी विचारधारा के व्‍यक्ति थे, अत: देश-प्रेम और मानवता के अनेक रूप उनकी रचनाओं में देखने को मिलते है। पत्रकारिता के क्षेत्र में इन्‍होंने निहित स्‍वार्थों को छोड़कर समाज में उच्‍च आदर्शों को स्‍थापित किया है।

उन्‍होंने हिन्‍दी को नवीन शैल्‍ी-शिल्‍प से सुशोभित किया। इन्‍होंने संस्‍मरण, रेखाचित्र, यात्रा-वृत्तान्‍त, रिजोर्ताज अादि लिखकर साहित्‍य-संवर्द्धन किया है। ‘नया जीवन’ और ‘विकास’ नामक समाचार-पत्रारें के माध्‍यम से तत्‍कालीन राजनीतिक, सामाजिक, तथा शैक्षिक समस्‍याओं पर इनके निर्भीक एवं आशावादी विचारों का परिचय प्राप्‍त होता है। 9 मई 1995 ई. को इनका देहान्‍त हो गया।

कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर साहित्यिक परिचय:

हिंदी के श्रेष्ठ रेखा चित्र , संस्मरण कारों और निबंधकारों में प्रभाकर जी का स्थान अत्यधिक महत्वपूर्ण है। उनकी रचनाओं में कलागत आत्मपरकता और संस्मरणकता को ही प्रमुखता प्राप्त हुई है । पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रभाकर जी को अपूर्ण सफलता मिली है।

पत्रकारिता को उन्होंने सेवार्थ सिद्धि का साधन नहीं बनाया लेकिन इसका उपयोग उच्च मानवीय मूल्यों की स्थापना में किया । साहित्य के क्षेत्र में आपकी सेवाएं संस्मरणीय हैं। पत्रकारिता में आपने क्रांतिपूर्ण कदम बढ़ाया। आपकी पत्रिका है ज्ञानदेव ।

इन्होंने अनेक साहित्यकारों को उभारा है । जिन्होंने सहारन पुर से प्रकाशित होने वाली पत्रिका नवजीवन का भी संपादन किया। नए नए साहित्यकारों के लिए आप स्नेहमय एवम भावपूर्ण लेख लिखते रहे। तथा उनका मार्ग प्रशस्त करके आपने हिंदी साहित्य को नए आयामो से ।परिचय कराया ।

हिंदी साहित्य की निरंतर सेवा में मृत्यु प्रयंत संलग्न रहे। आप आदर्श साहित्यकार हैं । आपकी गणना रेखाचित्र,संस्मरण , तथा ललित निबंध में की जाती है। कुछ विशेष विद्वानों ने इनके विषय में कहा है –“इनके लेख इनके राष्ट्रीय जीवन की मार्मिक संस्मरणों की जीवन झाकियां है। जिसमे भारतीय स्वाधीनता के इतिहास के महत्वपूर्ण दृस्टि भी है।”

कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर की रचनाएँ:

‘प्रभाकर’ जी की प्रमुख कृतियॉं है।

  • धरती के फूल
  • आकाश के तारे 
  • जिन्‍दगी मुस्‍कुराई 
  • भूले-बिसरे चेहरे
  • दीप जले शंख बजे
  • माटी हो गयी सोना
  • मह‍के ऑंगन चहके द्वार
  • बाजे पयालियाके घूँघरू
  • क्षण बोले कण मुस्‍काये 
  • रॉबर्ट नर्सिंग होम में

कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर की भाषा-शैली:

कन्‍हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ की भाषा में अद्भुत प्रवाह विद्यमान है। इनकी भाषा में मुहावरों एवं उक्त्यिों का सहज प्रयोग हुआ है। आलंकारिक भाषा से इनकी रचनाऍं कविता जैसा सौन्‍दर्य प्राप्‍त कर गयी है। इनके वाकय छोटे-छोटे एवं सुसंगठित है, जिनमें सूक्तिसम संक्षिप्‍तता तथा अर्थ-माम्‍भीर्य है। इनकी भाषा में व्‍यंग्‍यात्‍म्‍कता, सरलता, मार्मिकता, चुटीलापन तथा भावाभिव्‍यक्ति की क्षमता है।

‘प्रभाकर’ जी हिन्‍दी के मौलिक शैल्‍ीकार है1 इनकी गद्य-शेैली चार प्रकार की है 

  • भावात्‍मक शैली
  • वर्णनात्‍मक शैली 
  • नाटकीय शैली 
  • चित्रात्‍मक शैली 

कन्‍हैयालाल किश्र ‘प्रभाकर’ हिन्‍दी साहित्‍य की निबन्‍ध विधा के स्‍तम्‍भ है। अपनी अद्वितीय भाषा-शैली के कारण वे एक महान गद्यकार है। राष्‍ट्रीय आन्‍दोलनों के प्रतिभागी एवं साहित्‍य के प्रति समर्पित साधकों में ‘प्रभाकर’ जी का विशिष्‍ट स्‍थान है।

इन्‍होंने हिन्‍दी में लधुकथा, संस्‍मरण, रेखाचित्र तथा रिपोर्ताज आदि विधाओं का प्रवर्तन किया है। वे जीवनपर्यन्‍त एक आदर्शवादी पत्रकार के रूप में प्रतिष्ठित रहे हैं।

निधन:

कन्हैयालाल मिश्र का निधन 9 मई 1995 को हुआ।

हिन्दी साहित्य में स्थान:

कन्हैयालाल मिथ ‘प्रभाकर’ हिन्दी साहित्य के निवन्ध विधा के स्तम्भ हैं। इनकी अद्वितीय भाषा और शैली ने इनका स्थान गद्यकारों में विशिष्ट बना लिया है। हिन्दी साहित्य में अपने महान कृतित्व के लिए प्रभाकर जी सदैव स्मरणीय रहेंगे। वस्तु एवं शिल्प दोनों ही दृष्टियों से उनका कृतित्व बेजोड है।

कन्हैयालाल मिथ ‘प्रभाकर Wikipedia लिंक: Click Here

Remark:

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