UP Board Solutions for Class 7 Science Chapter 19 जल

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अभ्यास-प्रश्न

प्रश्न 1.
सही विकल्प चुनकर अभ्यास पुस्तिका में लिखिए:
(क) जल का घनत्व किस ताप पर अधिकतम होता है-
(अ) 0°C
(ब) 4°C (✓)
(स) -4°C
(द) 100°C

(ख) इनमें से कौन जल के साथ तेजी से क्रिया करता है-
(अ) सोडियम (✓)
(ब) कैल्सियम
(स) मैगनीशियम
(स) लोहा

(ग) जल की स्थाई कठोरता किसके कारण होती है-
(अ) कैल्सियम बाई कार्बोनेट
(ब) मैगनीशियम बाई कार्बोनेट
(स) कैल्सियम या मैगनीशियम के सल्फेट और क्लोराइड (✓)
(द) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
(क) जंग लोहे का संक्षारण है।
(ख) जल में हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन का अनुपात 2 : 1 है।
(ग) जल एक प्रमुख विलायक है।
(घ) अस्थाई कठोरता कैल्सियम बाईकार्बोनेट और मैग्नीशियम बाई कार्बोनेट की उपस्थिति के कारण होती है।
(ङ) जल की स्थाई कठोरता धावन सोडा के द्वारा दूर किया जा सकता है।

प्रश्न 3.
सही कथन के आगे सही (✓) तथा गलत कथन के आगे क्रास (✗) का चिन्ह लगाइए-
(क) कठोर जल को पीने के लिए उपयोग में लाना चाहिए। (✗)

(ख) अधिकांश ठोस पदार्थ की विलेयता ताप बढ़ाने पर बढ़ती है। (✓)
(ग) जल का क्वथनांक पानी की शुद्धता का परीक्षण करने में उपयोगी है। (✓)
(घ) समुद्री जल में अधिक मात्रा में नमक घुला होता है। (✓)
(ङ) वाष्पन की प्रक्रिया क्षेत्रफल पर निर्भर नहीं करती। (✗)

प्रश्न 4.
जल की कठोरता का क्या कारण है ? स्थाई कठोरता कैसे दूर करेंगे ?
उत्तर-
जल की कठोरता कैल्सियम एवं मैगनीशियम के घुलित लवण जैसे–कैल्सियम बाईकार्बोनेट, मैगनीशियम बाईकार्बोनेट, कैल्सियम क्लोराइड, मैगनीशियम क्लोराइड, कैल्सियम सल्फेट, मैगनीशियम सल्फेट आदि के कारण होती है।
जल की स्थायी कठोरता दूर करने का तरीका सोडियम कार्बोनेट (Na2CO3) की एक निश्चित मात्रा स्थायी कठोरता वाले जल में डालकर उबाल लेते हैं। जल में उपस्थित घुले हुए लवण CaCl2, MgCl2 आदि सोडियम कार्बोनेट से क्रिया करके अविलेय लवण बनाते हैं, जिन्हें छानकर अलग कर लिया जाता है। इस प्रकार प्राप्त जल साबुन के साथ झाग देता है। यानी जल की स्थायी कठोरता दूर हो जाती है।

UP Board Solutions for Class 7 Science Chapter 19 जल 4
UP Board Solutions for Class 7 Science Chapter 19 जल 4

प्रश्न 5.
जाड़े के मौसम में नदियों के जल की सतह पर बर्फ जमी होने पर भी जल के अन्दर के प्राणी कैसे जीवित रहते हैं?
उत्तर-
जब जाड़े के दिनों में ताप 0°C से नीचे चला जाता है तो नदियों का पानी बर्फ बनकर जमने लगता है। जमी हुई बर्फ का आयतन अधिक व घनत्व कम होने से यह पानी की सतह पर तैरने लगती है। बर्फ पानी को अच्छी तरह कवच के समान ढक लेती है यह बाहर की ठंडक को पानी के अंदर नहीं पहुँचने देती है। बर्फ की यह परत जाड़े में स्वेटर पहनने के समान है। तालाब, झील या नदी की सतह पर जब तॉप 0°C होता है तो सतह के नीचे का ताप शून्य से अधिक रहता है और पानी ही रहता है क्योंकि बर्फ की परत पानी की ऊष्मा को बाहर नहीं जाने देती। यही कारण है कि जाड़े के मौसम में नदियों के जल की सतह पर बर्फ जमी होने पर जल के अंदर के प्राणी जीवित रहते हैं।

प्रश्न 6.
जल संरक्षण से होने वाले लाभ लिखिए ?
उत्तर-
जल संरक्षण का अर्थ है पानी की बचत करना। जल संरक्षण के दूरगामी लाभ हैं। यदि हम अपने दैनिक जीवन में प्रतिदिन खर्च होने वाले जल का 10 प्रतिशत जल भी बचाएँ तो आनेवाली पीढ़ी के लिए काफी राहत हो जाएगी। इससे एक लाभ यह भी होगा कि जल की कमी होने पर हम बचे हुए जल का उपयोग कर सकते हैं। साथ ही ऐसे लोगों को भी जल प्राप्त हो सकेगा जो जल संकट का सामना कर रहे हैं।

प्रश्न 7.
तालाब, नाली तथा शहरों के अपशिष्ट प्रदूषित जल के प्रदूषण कम करने तथा शुद्ध करने के उपाय का वर्णन कीजिए?
उत्तर-
तालाब, नाली तथा शहरों के अपशिष्ट प्रदूषित जल के प्रदूषण कम करने तथा शुद्ध करने के उपाय-
औद्योगिक अपशिष्ट तथा शहरों के मल व्ययन के जल को नदियों अथवा समुद्रों में प्रवाहित करने से पहले सीवेज ट्रीटमेंट संयत्र द्वारा उपचारित किया जाता है। सबसे पहले जल-मल को एक घर्षण अभिक्रिया से गुजारते हैं। तत्पश्चात् इसे अनेक अवसाद हौजों (कक्ष) से गुजारते हुए चूने की सहायता से उदासीन किया जाता है। इस चरण तक का प्रक्रम प्राथमिक उपचार कहलाता है। जल में अभी भी रोगाणु, अन्य सूक्ष्मजीव एवं जैविक वज्र्य पदार्थ काफी मात्रा में विद्यमान होती हैं। अतः उदासीनीकरण से प्राप्त बहिःस्राव को उच्च स्तरीय अवायवी बहाव आवरण में भेजा जाता है। यह एक प्रतिक्रम (रियेक्टर) है।

इसमें अवायवी जीवाणु जल में उपस्थित जैव निम्नीकरणीय पदार्थों का अपघटन करते हैं। इस अभिक्रिया में दुर्गन्ध समाप्त हो जाती है तथा मेथेन (CH4) बाहर निकलती है। जिसको सार्थक उपयोग किया जा सकता है। इस प्रकार 85 प्रतिशत तक प्रदूषक हट जाते हैं। यहाँ से जल को वायु मिश्रण टैंकों में भेजा जाता है जहाँ इस जल में वायु तथा जीवाणु मिश्रित किये जाते हैं। जीवाणु जैववर्त्य का अपमार्जन करते हैं। यह जैव उपचार द्वितीयक उपचार कहलाता है। इसके उपरान्त भी जल पीने योग्य नहीं होता। हानिकारक सूक्ष्म जीवों को हटाना आवश्यक है। इसलिए रोगाणुनाशन एक अन्तिम चरण (तृतीय उपचार) प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में जल में घुले अजैविक पदार्थों व जीवाणुओं को पूर्णतः मुक्त किया जाता है। इसके लिए क्लोरीनीकरण, वाष्पीकरण, विनिमय अवशोषण, तलछटीकरण, बालू छन्नक जैसी विधियाँ प्रयोग में लाई जाती हैं। इस प्रकार शहरों के अपशिष्ट जल का शोधन करके कृषि कार्य व अन्य उपयोग में किया जाता है।

प्रोजेक्ट कार्य – नोट – विद्यार्थी स्वयं करें।

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