नेज अर्धचालक | n –  प्रकार के अर्द्धचालक | p- प्रकार का अर्धचालक 

नेज अर्धचालक (pure semiconductor):-की संरचना सम चतुष्फलकीय होती है किसी अर्द्धचालक की संरचना समझने के लिए जर्मेनियम (Ge) का उदाहरण लेते है जिसका इलेक्ट्रोनिक विन्यास 2,8,18,4 होता है। इसके बाहरी कोश में ele  की संख्या 4 होती है। अतः यह अष्टक बनाने के लिए अन्य जर्मेनियम परमाणु के 4 इलेक्ट्रॉन से सह संयोजक बंध बना लेते है। इस प्रकार एक भी e स्वतंत्र नहीं है। अतः शून्य कैल्विन ताप पर पूर्ण कुचालक होता है। जैसे जैसे ताप बढ़ाते है वैसे वैसे e तापीय ऊर्जा ग्रहण करके चालन बैण्ड में पहुच जाते है। इस प्रकार संयोजकता बैण्ड में इलेक्ट्रॉन की कमी हो जाती है इस कमी को कोटर कहते है। जो धनावेशित कण की तरह व्यवहार करती है। इस प्रकार नेज अर्द्धचालक में स्वतंत्र e की संख्या ne और स्वतंत्र कोटरों की संख्या n दोनों बराबर होते है।

ne =  nn

जब नेजअर्द्धचालक को जब किसी बैटरी से जोड़ते है तो स्वतंत्र e बैटरी के धन सिरे की ओर व कोटर ऋण सिरे की ओर गति करते है। परन्तु दोनों के कारण धारा एक ही दिशा में प्रवाहित होती है यदि इलेक्ट्रॉन के कारण धारा Ie और कोटर के कारण धारा I है तो –

Ie = In

डाईग्राम

n –  प्रकार के अर्धचालक (n – type semiconductor):- 

यदि शुद्व अर्द्धचालक जैसे Ge में ऐसे अशुद्वि मिलाये जिसके बाहरी कोश में 5 e हो जैसे कि आर्सेनिक, एंटीमनी, फासफोरस आदि। इस प्रकार की अशुद्वि मिलाने से अशुद्वि के 5 e से 4 ele जर्मेनियम परमाणु के 4 e से सहसंयोजक बंध बना लेते है। अशुद्धि का 5 वाॅ इलेक्ट्रॉन सहसंयोजक बंध बनाने में काम में ही आता है अतः ऊष्मीय ऊर्जा ग्रहण करके अर्द्धचालक के चालन बैण्ड में पहँुच जाता है और धारा प्रवाह में सयंोग करता है|

इस प्रकार इसमें धारा प्रवाह स्वतंत्र e के कारण होताहै इसलिए इAसे  n- प्रकार का अर्द्धचालक कहते है। इसमें ताप जनित कोटर भी होते है परन्तु इनकी संख्या बहुत कम होती है। इसलिए इन्हें अल्प संख्यक धारावाहक कहते है तथा स्वतंत्र e को बहु संख्यक धारावाहक कहते है। इसमें अशुद्वि धारा प्रवाह के लिए 1 e का त्याग करती है। इसलिए अशुद्वि को दाता प्रकार की अशुद्वि कहते है।

p –  प्रकार के अर्धचालक (p – type semiconductor):-

यदि शुद्ध अर्द्धचालक जैसे जर्मेनियम में ऐसी अशुद्वि मिलाये जिसके बाहरी  कोश में 3 e है जैसे बोराॅन, इण्डियम, एलयुमिनियम आदि तो जर्मेनियम के 4e मेंसे 3 e अशुद्धि के 3 el से सहसंयोजक बंध बना लेते है। जर्मेनियम के चौथे इलेक्ट्रॉन को संहसयोजक बंध बनाने के लिए 1e  की कमी है इस कमी को कोटर कहते है जो धनावेशित कण की तरह व्यवहार करती है धारा प्रवाह इन कोटर के द्वारा होता है इसलिए इसे p – प्रकार का अर्द्धचालक कहते है इसमें ताप जनित electron भी होते है। जिन्हें अल्प संख्यक धारा वाहक कहते है जबकि स्वतंत्र कोटरों को बहुसंख्यक धारा वाहक कहते है। अशुद्धि 1 e को ग्रहण करती है इसलिए अशुद्धि को ग्राही प्रकार की अशुद्धि कहते है।

Remark:

दोस्तों अगर आपको इस Topic के समझने में कही भी कोई परेशांनी हो रही हो तो आप Comment करके हमे बता सकते है | इस टॉपिक के expert हमारे टीम मेंबर आपको जरूर solution प्रदान करेंगे|

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